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परस्थाणद्विदिअप्पाबहुगपरूवणा
३२३ द्वि. विसे । यढि० विसेसाधियो। अरति-सोग-अजसगित्ति० ज०वि० संखेज्ज। यढि० विसे० । असादा० जट्टि विसे० । यहि विसेसाधियो। एवं जहण्णयं परत्थाण. अप्पाबहुगं समत्तं।
एवं अप्पाबहुगं समत्तं
एवं चदुवीसमणियोगद्दाराणि समत्ताणि विशेष अधिक है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति, शोक और अयश कीर्तिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे असातावेदनीय का जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ।
इस प्रकार जघन्य परस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
इस प्रकार अल्पवहुत्व समाप्त हुआ। इस प्रकार चौथीम अनुयोगद्वार समाप्त हुए।
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