Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 341
________________ ३२८ महाबँधे दिधाद्दियारे एवं चैव । णवरि किण्ण-गीलाणं तित्थय० अवत्तव्वं णत्थि । ७०३. तेऊ ए पंचणा० - छदंस० - चदुसंज०-भय- दुगुं० तेजा०क० वण्ण ०४ - अगु० ४ - बादर पजत्त - पत्तेय० - णिमि० पंचंत० अस्थि भुज० - अप्पद० अवट्ठि ० । सेसं ओघं । एवं पम्माए वि । णवरि पंचिंदिय० तस० धुवं कादव्वं । O ७०४, वेदगसम्मा० पंचणा० छदंसणा ० चदुसंज० - पुरिस०-भय-दुगुं ० - तेजा० क०पंचिंदि० - समचदु० - वण्ण ०४ - अगु०४ - पसत्थ० -तस०४ - सुभग - सुस्सर - आदे ० - णिमि०उच्चा० - पंचत० अत्थि भुज० - अप्पद० - अवट्टि ० । सेसं ओघं । 0 ७०५. सासणे पंचणा०-णवदंसणा० - सोलसक० - भय - दुर्गु० - पंचिंदि०-तेजा० - क०वण्ण०४ - अनु०४-तस०४ - णिमि० पंचंत० अत्थि भुज ० - अप्पद ० -अवट्टि ० । सेसं ओघं । ७०६. सम्मामि० दोवेदणीय - चदुणोक० - थिराथिर - सुभासुभ-जस० - अजस ० अस्थि भुज ० - अप्पद ० - अवट्टि ० - अवत्तव्वं० । सेसाणं अस्थि भुज- अप्पद०-३ -अवडि० । एवं समुत्तिणा समत्ता सामित्ताणुगमो ७०७. सामित्ताणुगमेण दुवि० - ओघे० आदे० । ओघेण पंचणा० छदंसणा० चदुतीनलेश्यावाले जीवोंमें इसी प्रकार जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि कृष्ण और नीललेश्या वाले जीवों में तीर्थङ्कर प्रकृतिका अवक्तव्य पद नहीं है । ७०३. पतिलेश्यावाले जीवों में पांच ज्ञानावरण, छह दर्शनावण, चार संज्वलच, भय, जुगुप्सा, तेजस शरीर, कार्मणशरीर, वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रयेक, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतर बन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेष भङ्ग ओघके समान है । इस प्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोंमें भी जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनमें पञ्चेन्द्रिय जाति और त्रस प्रकृतिको ध्रुव कहना चाहिये । ७०४. वेदक सम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, पुरुष वेद, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, पञ्चेन्द्रिय जाति, समचतुरस्र संस्थान, वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्तविहायोगति, त्रस चतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं । शेष भाग ओघ के समान है । ७०५. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, त्रस चतुष्क, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेष भङ्ग ओघ के समान है । ७०६. सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें दो वेदनीय, चार नोकषाय, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशःकीर्ति और अयशःकीर्ति के भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं, अवस्थितबन्धक जीव हैं और अवक्तव्यबन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। 1 इस प्रकार समुत्कीर्तना समाप्त हुई । स्वामित्वानुगम ७०७. स्वाभित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - प्रोध और आदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only श्रधसे www.jainelibrary.org

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