Book Title: Mahabandho Part 3
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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परत्थाद्विदिप्पा बहुग परूवणा
पंचिंदिय-तिरिक्ख ०३ | पंचिंदियतिरिक्खअपजत्ता० पंचणा० - णवदंसणा ० - मिच्छ०-सोलसक० -भय-दुगुं ० -ओरालि० - तेजा ० क ० वण्ण०४ - अगु० - उप० - णिमि० - पंचंत ० अत्थि भुज ० -अप्पद ० - अवट्ठि० । सेस ओघं । एस भंगो सव्वअपजत्तगाणं एइंदिय-विगलिंदियपंचकायाणं च । णवरि तेउ०- वाउ० तिरिक्खगदितियस्स अवत्तव्यं णत्थि ।
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६६६. देवेसु पंचणा ० छदंसणा ० चारसक० -भय-दुगुं०-ओरालिय० -तेजा० क० वण्ण०४अगु०४ - बादर-पञ्जत्त-पत्तेग०- णिमि० - तित्थय ०. पंचतरा० अस्थि भुज ० - अप्पद ० - अवडि० । सेसं ओवं । एवं भणादि याव सोघम्मीसाण त्ति | सणकुमार याव सहस्सार ति णिरयोघो । आणद याव णवगेवजा त्ति पंचणा० छदंसणा ० - बारसक०-भय-दुगुं०-मणुसग०- पंचिंदि ० - ओरालि ० – तेजा ० - क ० - ओरालि० अंगो-व -वण्ण ०४ - मणुसाणुपु० - अगु०४तस -४ - णिमि० - तित्थय० - पंचंत० अस्थि भुज ० यप्पद ० अवट्टि० । सेसाणं ओघो । अणुदिस याव सवट्ठा त्ति पंचणा ० छदंस० बारसक० पुरिसवे ०-भय-दु० मणुसग०-पंचिंदि०ओरालि० - तेजा० क० - समचदु० ओरालि० अंगो० - वजरि० - मणुसाणु ० - वण्ण ०४- अगु०४पसत्थ० -तस०४ - सुभग- सुस्सर - आदेंज ० - णिमि० - तिथय० - पंचंत ० अत्थि भुज० - अप्पद०अट्टि० । सेसं ओघं ।
हैं। इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकके जानना चाहिए। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पयप्तिकों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलहकषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तराय इनके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघ के समान है । यही भङ्ग सब अपर्याप्त, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और पाँच स्थावरकायिक जीवोंके जानना चाहिए | इतनी विशेषता हैं कि अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंमें तिर्यञ्चगतित्रिकका अवक्तव्य भङ्ग नहीं है ।
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६६६. देवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, श्रदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अंगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, निर्माण, तीर्थंकर और पाँच अन्तराय इनके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थिनबन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघ के समान है। इसी प्रकार भवनवासी देवोंसे लेकर सौधर्म और ऐशान कल्प तकके देवोंमें जानना चाहिए। सनत्कुमार कल्पसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवों में सामान्य नारकियोंके समान भङ्ग हैं। आनत कल्पसे लेकर नौग्रैवेयक तकके देवोंम पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कपाय, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसरीर, कार्मणशरीर, औदारिक अङ्गोपाङ्ग, चार वर्ण, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चार, त्रस चार, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तरायके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक देवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कपाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, श्रदारिकशरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति त्रसचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तराय इनके भुजगारबन्धक जीव हैं, अल्पतरबन्धक जीव हैं और अवस्थितबन्धक जीव हैं। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघ के समान है ।
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