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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे
देवायु० ज० कि० असंखेज्ज० । यट्टि० त्रिसे० । पंचणोक० देवगदि चदुसरीर० - जस०उच्चा० ज० द्वि० संखेज्ज० । यद्वि० विसे० | पंचरणा० - छदंसणा ० -सादा० - पंचंतरा० ज० द्वि० [ विसे० । ] यद्वि० विसे० । चदुसंज० ज० हि० विसे० । यहि० विसे० । अरदि-सोग- अजस० ज० द्वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । असादा० ज०ड० विसे० । यद्वि० विसे० । पच्चक्खाणा ० ४ ज० द्वि० संखेज्ज० । यहि ० विसे ० । अप्पच्चक्खाणा ०४ ज० वि० संखेज्ज० । यद्वि० विसे० । मणुसगदि-ओरालि० ज० वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० | थी गिद्धितियस्स ज० द्वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । श्रताणुबंधि०४ ज० हि० विसे० । यहि० विसे० । मिच्छ० ज० द्वि० विसे० । यहि० विसे० । इत्थि० ज० द्वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । पुंस० ज० द्वि० विसे० । यहि० विसे० । खीचा० ज० द्वि० विसे० । यद्वि० विसे० । तिरिक्खगदि० ज० द्वि० विसे० । यहि ० विसे । एवं पम्माए ।
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६८८. सुकाए सव्वत्थो० लोभसंज० ज० द्वि० । यद्वि० विसे० । सेसं ओघं या को संज ० ज ० ० [ विसे० । ] यद्वि० विसे० । मणुसायु० ज० वि० संखेज्ज० । असंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच नोकषाय, देवगति, चार शरीर, यशः कीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, सातावेदनीय और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे चार संज्वलन का जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति शोक और अयशःकीर्तिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे असातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे प्रत्याख्यानावरण चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे श्रप्रत्याख्यानावरण चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे मनुष्यगति और श्रदारिक शरीरका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे
स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे स्त्यानगृद्धि तीनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे श्रनन्तानुबन्धी चारका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसक वेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे नीच गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे तिर्यञ्चगतिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार पद्मलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए ।
६८८. शुक्ललेश्या वाले जीवों में लोभ संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार क्रोध संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है यहाँ तक शेष अल्पबहुत्व ओघ के समान है। इससे मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध
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