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महाबंधे दिदिबंधाहियारे ६७६. अवगदवे० सव्वत्थोवा लोभसंज० जहि । यहि विसे । पंचणा०चदुदंस --पंचंत. जाहि० संखेंज- । यहि विसे० । जस०--उच्चा० ज.हि. संखेंज। यहि विसे० । सादा० जट्टि विसं० । यहि विसे० । मायसंज. जहि० संखेंज्जः । यहि विसे० । माणसंज० ज०हि विसं० । यट्टि विसे । कोधसंज. जहि० विस० । यहि. विसे० ।
६७७. कोधकसा० सव्वत्थोवा तिरिक्ख-मणुसायु० जाहि० । यहि विसे । चदुसंज, जहि० संखेज्ज । [यहि विसे०।] पुरिस जहि संखेंज । यहि विसे । दोआयु० ज०हि संखेज्ज० । यहि. विसे० । पंचणा०--चदुदंस-पंचंत० जटि० संखेज०। यहि विसे० । उच्चा० ज हि संखेज्ज । यहि. विसे । एवं जसगित्ति० । सादावे० ज०हि. विसे । यहि विसे । उवरि अोघभंगो ।
६७८. माणकसाइ० सव्वत्थोवा तिरिक्ख-मणुसायु० ज०हि०। यहि विसे । तिएिणसंज० जहि संखेंजः। यहि विसे । कोधसंज. जट्टि० विसे० । यहि. विसें० । पुरिस० ज०टि संखेज्ज०। यहि विसे० । दोआयु० ज हि०
६७६. अपगतवेदी जीवोंमें लोभ संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्त्रोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे माया संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मान संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे क्रोध संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है।
६७७. क्रोधकषायवाले जीवों में तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे चार संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे दो आयुओंका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे उञ्चगोत्रका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार यशःकीर्तिका अल्पबहुत्व है। इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आगे ओघके समान भङ्ग है ।
६७८. मानकषायवाले जीवों में तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे तीन संज्वलनोंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुष वेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे
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