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परत्थाणहिदिअप्पाबहुगपरूवणा संखेन । यहि विस। पंचणा-चदुदंस०--पंचंत० ज०हि० संखेंजः । यहि० विसे । जस०--उच्चा० ज.हि संखेंज । यहि विसे० । सादा० जट्टि. विसे० । यहि विसे । उवरि ओघभंगो ।
६७६. मायाए सव्वत्थोवा तिरिक्रव--मणुसायु० जहि । यहि. विसे० । दोसंज० ज-हि० संखेंज । यहि विसे० । माणसंज० जहि. विसे । यहि विसे । कोषसंज० ज०हि. विसे० । यहि. विसे० । पुरिस० ज०हि० संखेंज। यहि विसे० । दोआयु० ज०ट्टि संखेज्जः । यहि विसे० । पंचरणा-चदुदंस०पंचंत. जहि• संखेंज । यहि विसे । जसगि-उच्चा० ज०हि० संखेंज्ज.। यहि विसे० । सादा. ज.हि. विसे० । यहि विसे० । हस्स--रदि-भय--दुगुतिरिक्व--मणुसगदि--ओरालिय०--तेजा-क०-णीचा जहि असंखेज्ज० । यहि. विसे । उवरिं ओघभंगो । लोभे मूलोघं ।
६०. मदि०-सुद०-असंज-तिएिणले०-अन्भवसि.-मिच्छादि-असणिण ति तिरिक्खोघं । विभंगे सव्वत्थोवा तिरिक्रव-मणुसायु० जहि । यहि विसे । दो आयुओंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे आगे ओघके समान भङ्ग है।।
६७९. माया कषायवाले जीवोंमें तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे दो संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मानसंज्व. लनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे क्रोध संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे दो आयुओंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यश-कीर्ति
और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, औदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर और नीचगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे आगे ओघके समान भङ्ग है । लोभकषायवाले जीवोंमें श्रोधके समान भङ्ग है ।
६८०. मत्यज्ञानी, श्रुताशानी, असंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंझी जीवोंमें सामान्य तिर्यञ्चोंके समान भङ्ग है। विभङ्गलानी जीवों में तिर्यंचायु और
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