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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे वेउवि०अंगो० उ.हि. विसे । यहि विसे। संघडणं देवोघं । णवरि रवीलिय-असंपत्त० दोगणं उ.हि. विसे० ।
६०६. गवुसगे ओघं। णवरि सव्वत्थोवा चदुअायु-जादी उ०हि । यहि० विसे । पंचिंदि० उक्क हि० विसे । यहि विसे० । सव्वत्थोवा थावरादि०४उ टि० । यहि० विसे । तस०४ उ.हि. विसे० । यहि विसे० । अवगदवेदे सव्वाणं सव्वत्थोवा उ ट्ठि । यहि विसे ।
६१०. मदि-सुद-विभंग प्रोघं । आभि०-सुद०-प्रोधि० सव्वत्थोवा सादा० उ०हि०। यहि बिसे० । असादा० उ०हि० संखेजगु० । यहि० विसे । एवं परियत्तमाणीणं । सेसाणं सव्वत्थोवा उहि । यहि० विसे । णवरि मोह. सव्वत्थोवा हस्स-रदि० उहि । यहि. विसे० । पंचणोक. उ.हि. विसे । यहि विसे०। वारसक० उ०ट्टि० विसे । यढि० विसे । सव्वत्थोवा मणुसायु० उहि । यहि. विसे० । देवायु. उ.हि. असंखेज्ज । यहि. विसे० । मरणपज्जवल --संजद--सामाइ० ---छेदो--परिहार०--संजदासंजद---अोधिदं०--सुक्कले०
यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे वैक्रियिक श्राङ्गोपाङ्गका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। संहननोंका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि कीलक संहनन और असम्प्राप्तासृपाटिका संहनन इन दोनोंका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध विशेष अधिक है।
६०९. नपुंसकवेदी जीवों में श्रोघके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि चार आयुओं और चार जातियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पञ्चेन्द्रिय जातिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। स्थावर प्रादिचारका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे त्रस चतुष्कका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। अपगतवेदी जीवों में सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध सबसे स्तोक है इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है।
६१०. मत्यज्ञानी, श्रुताशानो और विभङ्गज्ञानी जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। आभिनिबोधिकशानी, श्रतज्ञानी, और अवधिज्ञानी जीवों में साता प्रकृतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे असाता वेदनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार परावर्तमान प्रकृतियोंका जानना चाहिए । शेष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे पत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इतनी विशेषता है कि मोहनीय कर्ममें हास्य और रतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच नोकपायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्धविशेष अधिक है। इससे वारह कषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। मनुष्यायुका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध सवसे स्तोक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे देवायुका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष
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