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हिदिश्रप्पा बहुगपरूवणा
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विसे० । चदुरिंदि० ज० वि० संर्खेज्जगु० । यहि० विसे० । उवरिं ओषं । सव्वत्थोवा चदुणं सरीराणं ज० द्वि० । यहि० विसे० | ओरालिय० ज० हि० संखेज्ज० । यहि ० विसे० | संठा संघडणं दोविहा० विदियपुढ विभंगो । अंगोवंग० सरीरभंगो । सव्वत्थोवा तस०४ जट्टि० । यद्वि० विसे० । तप्पडिपक्खाणं ज० वि० संखेज्ज० । यहि ० विसे । सव्वत्थोवा थिरादिपंच० ज० हि० । यहि० विसे० । तप्पडिपक्खाणं ज०० संखेज्ज० । यद्वि० विसे० । सव्वत्थोवा जसगि०--उच्चा० ज०हि० । यहि० विसे० । अजस० - णीचा० ज० डि० संखेंज्ज० । यहि० विसे० । सेसं पंचिदियभंगो । ६२८. वचिजोगि० - सच्च मोस० तसपज्जत्तभंगो । ओरालिया • खवगपगदी घं । सेसं तिरिक्खोवं । ओरालिमि० तिरिक्खोघं । वेउव्वियका० सोधम्मभंगो । एवं उव्वियमि० । आहार० - आहारमि० उकरसभंगो । कम्मइ० - अणाहार० ओरालियमिस्सभंगो । इत्थवेदे ओघं । सेसाणं पंचिदियभंगो | एवं पुरिसवे० । दवेदे ओ । कोधादि ० ४ ओघं । वरि मोह० विसेसो यादव्वो । संजलगा०४
गतिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । पञ्चेन्द्रिय जातिका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे चतुरिन्द्रियजातिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थिति:बन्ध विशेष अधिक है । इससे श्रागेका अल्पबहुत्व श्रोध के समान है । चार शरीरोंका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे श्रदारिक शरीरका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । संस्थान, संहनन और दो विहायोगति इनका भङ्ग दूसरी पृथिवीके समान है । श्राङ्गोपाङ्गों का भङ्ग शरीरोंके समान है । त्रसचतुष्कका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उनकी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । स्थिर आदि पाँच प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे इनकी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे श्रयशःकीर्ति और नीचगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। शेष भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है
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६२८. वचनयोगी और सत्यमृपावचनयोगी जीवोंमें सपर्याप्त जीवोंके समान भङ्ग है । औदारिककाययोगी जीवों में क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग श्रोघके समान है । तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोके समान है। श्रदारिक मिश्रकाययोगी जीवोंमें सामान्य तिर्यञ्चके समान भङ्ग है । वैक्रियिककाययोगी जीवों में सौधर्मकल्पके समान भङ्ग है । इसी प्रकार वैक्रियिकमिथकाययोगी जीवोंके जानना चाहिए। आहारक काययोगो और आहारकमिश्र काययोगी जीवोंमें उत्कृष्टके समान भङ्ग है । कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में श्रदारिकमिश्रकाय योगी जीवोंके समान भङ्ग है । स्त्रीवेदी जीवों में क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग श्रधके समान है। शेष प्रकृतियों का भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है । इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवों के जानना चाहिए। अपगतवेदी जीवोंमें ओधके समान भङ्ग है । क्रोधादि चार कषाय
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