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परत्थाडिदिपा बहुगपरूवणा
afro विसे० । पञ्चक्खाणा०४
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ज० हि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । अपचक्खा०४ ज ० वि० संखेज्ज० । यहि ० विसे० | मणुसगदि - ओरालि० ज० हि० संखेज्ज० ० । यहि० विसे० । श्रीगिद्धि ०३ ज० द्वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । ता०४ ज०० विसे० । यद्वि० विसे० | मिच्छ० ज०वि० विसे० । यहि ० ० । तिरिक्खगदि-णीचा० ज० वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० । इत्थि० ज० वि० संखेज्ज० । यहि० विसे० | एस० ज० हि० विसे० । यहि० विसे० । रियग० ज० द्वि० विसे० । यद्वि० विसे० ।
विसे०
६७०. वचिजो० सच्चामोस ० तसपज्जत्त भंगो । कायजोगि०-ओरालियका०चक्खुर्द ० भवसि० आहारगति श्रघं । ओरालियमि० तिरिक्खोघ । देवदिउव्व० ज० वि० संखेज्ज० । यहि ० विसे० सव्बुवरिं । एवं कम्म० णा हारगति ।
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६७१. वेउब्वियका० सव्वत्थोवा दो आयु० ज० हि० । यहि विसे । पंचपोक० - मणुसग ० - तिरिणसरीर जस ० उच्चा० ज० द्वि० असंखेज्ज० । यहि ० विसे० | सेसं सत्तमा पुढविभंगो । एवं वेडव्वियमि० आयु वज्ज० । रावरि तिरि
बन्ध विशेष अधिक है । इससे प्रत्याख्यानावरण चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे अप्रत्याख्यानावरण चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मनुष्यगति और दारिक शरीरका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे स्त्यानगृद्धि तीनका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अनन्तानुवन्धी चारका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे तिर्यञ्चगति और नीचगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नरकगतिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है।
६७०. वचनयोगी और असत्यमुपावचतयोगी जीवोंमें सपर्यातकों के समान भङ्ग है । काययोगी, औदारिककाययोगी, अचतुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंमें श्रधके समान भङ्ग है। श्रदारिक मिश्र काययोगी जीवोंमें सामान्य तिर्यञ्चोके समान भङ्ग है । देवगति और वैक्रियिकशरीरका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । ऐसा सबके अन्त में कहना चाहिए। इसी प्रकार कार्मण काययोगी और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए ।
६७१. वैक्रियिक काययोगी जीवोंमें दो आयुओं का जघन्य स्थितिवन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच नोकपाय, मनुष्यगति, तीन शरीर, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध ग्रसंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । शेष अल्पबहुत्व सातवीं पृथिवीके समान है । इसी प्रकार आयुकर्मको
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