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महाबंधे टिदिबंधाहियारे यहि विसे । णग्गोद० ज द्वि० संखेज । यहि विसे । सेसाणं उक्स्सभंगो। एवं संघड।
६२२. सव्वत्थोवा पसत्थ०--सुभग-सुस्सर-आदें--उच्चा० ज ढि० । यहि विसे० । तप्पडिपक्खाणं जट्टि संखेंज । यहि विसे । थिर--सुभ-जसगि० जहि. थोवा० । यहि. विसे० । तप्पडिपक्रवाणं जट्टि विसे० । यहि विसे० । एवं सत्तमाए।
६२३. तिरिक्खेसु छगणं कम्माणं णिरयोघं । आयु०४ मूलोघं । णामा० अोघं । णवरि सव्वत्थोवा जस० जहि । यहि विसे । अजस० जहि. विसे । यहि विसे । एवं पंचिंदियतिरिक्ख०३ । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तएमणिरयोघं ।
६२४. मणुसेसु मूलोघं । गवरि सव्वत्थोवा मणुसग० ज०हि० । यहि विसे० । तिरिक्खग० जहि विसे । यहि विसे । देवगदि० ज०हि० संखेंज । यहि विसे० । पिरयग० ज०हि. संखेज्जा । यहि. विसे० । जादी अोघं । सव्वत्थोवा तिएिणसरीराणं जहि । यहि. विसे०। वेउव्वि०-आहार० ज०हि०
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चाहिए । समचतुरस्रसंस्थानका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे न्यग्रोध परिमंडल संस्थानका जघन्य स्थितिषन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । शेष संस्थानोंकी मुख्यतासे अल्पबहुत्व उत्कृष्टके समान है। तथा इसी प्रकार संहननोंकी मुख्यतासे अल्पबहुत्व जानना चाहिए।
२२. प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, श्रादेय और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे इनकी प्रतिपक्षभूत प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। स्थिर, शुभ और यश-कीर्ति इनका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे इनकी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार सातवीं पृथिवीमें जानना चाहिए ।
६२३. तिर्यञ्चोंमें छह कर्मोकी मुख्यतासे अल्पवहुत्व सामान्य नारकियोंके समान है। चार आयुओंकी मुख्यतासे अल्पबहुत्व मूलोधके समान है। तथा नामकर्मकी प्रकृतियोंकी मुख्यतासे अल्पबहुत्व ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि यश-कीर्तिका जघन्य बन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अयशाकीर्तिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें सामान्य नारकियोंके समान जानना चाहिए ।
६२४. मनुष्यों में मूलोघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यगतिका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे तिर्यञ्चगतिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे देवगतिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नरकगतिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। पाँच जातियोंकी मुख्यतासे अल्पबहुत्व अोधके समान है। तीन शरीरोंका जघन्य
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