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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे ४८९. सव्वसुहुमाणं सव्वपगदीणं उक्क० अणु० खेरी । णवरि तिरिक्खायु० उक्क० लोग० असंखें. सव्वलो० । अणु० सव्वलो०। मणुसायु० उक्क० अणु० लोग० असंखेज० सव्वलो० । षणप्फदि-णियोदाणं एइंदियमंगो । णवरि तसपगदीणं लोग० असंखें कादव्यो। उजो०-बादर०-जसगि० उक्क० सत्तचोद्दस० । अणु० सब्बलो। बादरवणप्फदि-णियोदाणं पजत्तापजत्त० बादरपुढविअपजत्तभंगो । बादरवणफदिपत्ते. बादरपुढविभंगो। __४६०. पंचिंदिय-तस०२ पंचणा०-णवदसणा०-असादावे०-मिच्छ०-सोलसक०-णस०-अरदि-सोग-भय-दुगुं०-तिरिक्खग०-ओरालि०-तेज-क०- हुंड०-वण्ण. ४-तिरिक्खाणु०-अगु०४-पजल-परोय-अथिरादिपंच-णिमि०-णीचा०-पंचंत. उक० अह-तेरहचों । अणु० अहचौदस० सव्वलो० । सादावे०-हस्स-रदि-थिरसुभ० उक्क० अणु० अट्ठचो. सव्वलो० । इस्थि०-पुरिस-पंचिंदि०-ओरालि०अंगो०-पंचसंठा०-छस्संघ०-दोविहा०-तस-सुभग-सुस्सर-आदें उक. अणु० अट्ठ
४६. सब सूक्ष्म जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि तिर्यन्चायुकी उत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सबलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है. और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यायुकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । वनस्पति कायिक और निगोद जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान है। इतनी विशेषता है किस प्रकृतियोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण कहना चाहिए। उद्योत, बादर और यशःकीर्ति इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। बादर वनरपतिकायिक, बादर निगोद और इनके पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त जीवोंके समान है। बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग बादर पृथ्वीकायिक जीवोंके समान है।
.४९०. पन्चेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त, स और त्रस पर्याप्त जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यब्चगति औदारिक शरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यचगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर आदि पाँच, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह राज और कुछ कम तेरह बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह राज और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, हास्य, रति, स्थिर, और शुभ प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राज और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक आजोपाङ्ग, पाँच संस्थान, छह संहनन, दो विहायोगति, स, सुभग, सुस्वर और आदेय इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह राजू और कुछ कम
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