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महाबँधे ट्ठिदिबंधाहियारे
तेजा०--क० चदुवीसं मुहुत्तं । बादर [ पुढवि०- ] आउ०--तेज १० बाउ ० अपज्जत्ता ० एइंदियभंगो | सव्वसुहुमाणं एइंदियभंगो । बादरवणफदिपतेय० बादरपुढविभंगो । ५५८. अवगदवेदे सव्वपगदीरणं उक्क० जह० एग०, उक्क० वासपुधत्तं । अणु० जह० एग०, उक्क० लम्मासं । एवं सुहुमसं० । वेउब्वियमि०[० - आहार० - आहारमि० तित्थय० उक्त० ओघं । अणु० जह० एग०, उक्क० वासपुधत्तं० । सेसागं उक्क०
घं । ऋणु० जह० एग०, उक्क० अष्पष्पणो पगदिअंतरं ।
५५६. मणुस पज्ज० - सासण० सम्मामि० उक्क० ओघं । अणु० जह० एग०, उक्क० पलिदो ० संर्खे । सेसाणं खिरयादि याव सरिणत्ति उक्क० जह० एग०, उक्क० अंगुल॰ असंर्खे ० । ० पगदिअंतरं । युगारि एसिं प्रत्थि तेसिं उक्क जह० एग०, उक्क० अंगुल असंखे० । अणु० अप्पप्पणी पगदिअंतरं कादव्वं । एवं उक्करसंतरं समत्तं
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शरीर और कार्मणशरीरका चौबीस मुहूर्त है । बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त और बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीवोंका भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान है । सब सूक्ष्मोंका भङ्ग एकेन्द्रियोंके समान है । बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंका भङ्ग बादर पृथ्वीकायिक जीवोंके समान है ।
५५८. अपगतवेदी जीवों में सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है । अनुत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है । इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्पराय संयत जीवोंके जानना चाहिए । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, ग्राहारककाययोगी और आहाकमिश्रकाययोगी जीवों में तीर्थङ्कर प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका अन्तर काल
के समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट, अन्तर वर्षपृथक्त्व है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर के समान है तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अपने - अपने प्रकृति बन्धके समान है ।
५५९. मनुष्य पर्याप्त, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में अपनी सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका अन्तर काल श्रोघके समान है तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । नरकगति से लेकर संज्ञी तक शेष सब मार्गणात्रों में अपनी-अपनी प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर श्रृङ्गुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है जो असंख्याता संख्यात अवसर्पिणी और उत्स पिणियोंके बराबर है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका अन्तर काल प्रकृतिबन्धके अन्तर कालके समान है। आयु जिनके हैं उनके उत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर काल अंगुलके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है। जो कि श्रसंख्याता संख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिगियोंके बराबर है । तथा अनुत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीवोंका अन्तर काल अपने- अपने प्रकृतिवन्धके अन्तर कालके समान करना चाहिए |
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इस प्रकार उत्कृष्ट अन्तर काल समाप्त हुआ ।
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