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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे हिदि । यहिदि० विसे० । उक० संखेज्जः । यहिदि० विसे । एवं मुहमसंप० । णवरि सव्वाणं संखेंज्जगुणं कादव्वं ।
५६०. आभि०-सुद-बोधि० खवगपगदीणं ओघ । सेसाणं देवोघं । एस भंगो मणपज्जव-संजद-सामाइय-छेदो०-अोधिदं०-सुकले०-सम्मादि०-खइग०-उवसम०।
५६१. तेउ-पम्माए देवगदिभंगो । सासणे तिरिक्खोघं । असणिण णिरयदेवायूर्ण सव्वत्थोवा जह डिदि० । यहिदि. विसे | उक्क.हिदि. असंखेज्ज० । यहिदि० विसे । सेसाणं तिरिक्खोघं । णवरि तिरिक्ख-मणुसायु० मणुसअपज्जत्तभंगो। वेउब्बियलकं सव्वत्थोवा जहहिदि । यहिदि० विसे । उक्क हिदि. विसे । यहिदि. विसे । एवं डिदिअप्पाबहुगं समत्तं ।।
भूयो छिदिअप्पाबहुगपरूवणा ५६२. भूयो हिदिअप्पाबहुगं दुविधं--सत्थाणहिदिअप्पाबहुगं चेव परत्थाणहिदिअप्पाचहगं चेव । सत्थाणहिदिअप्पाबहगं दुविध--जहएणयं उक्कस्सयं च । उकस्सए पगदं। दुवि०--ओघे० आदे० । ओघे० पंचरणा-गरदंसणा-वएण४-अगु०४-तसथावर-आदाउज्जो -णिमि-तित्थय०--पंचंत. सव्वत्थोवा उक.हिदि । यहिदि० जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सब प्रकृतियोंका संख्यातगुणा करना चाहिए।
५९०. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग श्रोधके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। यह भङ्ग मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए ।
५६१. पीत और पद्मलेश्यावाले जीवों में देवगतिके समान भङ्ग है। सासादन सम्यग्दृष्टि जीवों में सामान्य तिर्यञ्चोंके समान भङ्ग है। असंशी जीवोंमें नरकायु और देवायुका जघन्य स्थितिवन्ध सवसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका भङ्ग मनुष्य अपर्याप्तकोंके समान है। वैक्रियिक छहका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इस प्रकार स्थितिअल्पवहुत्व समाप्त हुआ ।
भयः स्थितिअल्पबहत्वप्ररूपणा ५९२. भूयः स्थितिअल्पवहुत्व दो प्रकारका है-स्वस्थान स्थिति अल्पवहुत्व और परस्थान स्थितिअल्पबहुत्व । स्वस्थान स्थितिअल्पबहुत्व दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रस, स्थावर, प्रातप, उद्योत, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तराय इनका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। सातावेदनीयका उत्कृष्ट
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