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दिपाव हुगपरूवणा
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५८६. रइएस सव्वपगदीरणं सव्वत्थोवा जह० । यहिदि० विसे० । उक्क ० असंखज्ज० । यद्विदि० विसे० । एस भंगो सव्वणिरय-- सव्वदेवाणं ओरालियमि०उब्विय० - उव्वियमि० -- ग्राहार० - आहारमि ० कम्मइ० - परिहार०-संजदासंजदवेदसं० सम्मामि० ।
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५८७. तिरिक्खेसु चदुआयु० सव्वत्थोवा जह० द्विदि० । यहिदि० विसे० । उक्क० असंखेज्ज • ० । यद्विदि० विसे० । सेसारणं सव्वकम्मारणं सव्वत्थोवा जह० द्विदि० । यहिदि० विसे० । उक्क० द्विदि० संर्खेज्ज० । यहिदि० विसे० । एवं तिरिक्खोवं पंचिदियतिरिक्ख ०३ - मदि० - मुद० संज० - तिरिणले ० - अब्भवसि ० -मिच्छादिट्ठिति । पंचिदियतिरिक्खापज्जत्त० गिरयभंगो । एवं मणुस पज्जत - पंचिदि ० -तसग्रपज्ज० । ५८८. एइंदिए दोश्रायु० रियोघं । सेसाणं सव्वत्थोवा जह० द्विदि० । हिदि० विसे० । उक्क० हिदि० विसे० । यहिदि ० विसे० । एस भंगो सव्व एइंदियाणं सव्वविगलिंदियाणं पंचकायाणं च ।
५८६. अवगदवे० सादा० - जस० उच्चा० सव्वत्थोवा जह० हिदि० । यहिदि० विसे० । उक्क० द्विदि० असंखज्ज० । यद्विदि० विसे० | सेसाणं सव्वत्थोवा जह०
५८६. नारकियों में सब प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध श्रसंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । यह भङ्ग सब नारकी, सव देव, श्रदारिकमिश्र काययोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्र काययोगी, आहारककाययोगी, श्राहारक मिश्रकाययोगी, कार्मण काययोगी, परिहारविशुद्धिसंयत, संयतासंयत, वेदकसम्यदृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए ।
५८७ तिर्यञ्चों में चार श्रायुओं का जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। शेष सब कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिविशेष अधिक है । इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोके समान पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चत्रिक, मत्यशानी, श्रुताज्ञानी, श्रसंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्तकों में नारकियोंके समान भङ्ग है । इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त और त्रस अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए ।
५८८. एकेन्द्रियों में दो श्रायुओंका भङ्ग नारकियोंके समान है। शेष प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। यह भङ्ग सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय और पाँच स्थावरकायिक जीवोंके जानना चाहिए ।
५८९. अपगतवेदी जीवोंमें सातावेदनीय, यशःकीर्ति श्रोर उच्चगोत्र इनका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यरिस्थतिबन्ध विशेष अधिक है। इससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध श्रसंख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। शेष प्रकृतियोंका
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