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टिदिअप्पाबहुगपरूवणा
२७३ विसे० । सादावे. सव्वत्थोवा उक्क हिदि० । यहिदि. विसे । असादावे० उक्क. हिदि. विसे० । यहिदि. विसे० । सव्वत्थोवा पुरिस०--हस्स-रदीणं उक्क हिदि० । यहिदि० विसे० । इत्थि० उक्क०हिदि० विसे । यहिदि० विसे । णवुस०-अरदिसोग-भय-दुगु उक्क.हिदि. विसे । यहिदि० विसे० । सोलसक० उक्त हिदि० विसे । यहिदि० विसे० । मिच्छ ० उक्क हिदि० विसे । [ यहिदि विसे ।]
५६३. सव्वत्थोवा तिरिक्ख-मणुसायु० उक्क हिदि०। यहिदि. विसे । णिरय-देवायु० उक्क हिदि० संखेंज्जगु० । यहिदि० विसे० ।
५६४. सव्वत्थोवा देवगदि० उक्क हिदि । यहिदि० विसे० । मणुसग० उक्क० हिदि० विसे । यहिदि० विसे० । णिरय-तिरिक्वगदि० उक्क हिदि० [विसे०] यहिदि० विसे० । सव्वत्थोवा तिएिणजादीणं उक्क हिदि० । यहिदि. विसे । एइंदि०-पंचिंदि० उक० हिदि० विसे । यहिदि विसे । सव्वत्थोवा आहार०.. उक्का हिदि० । यहिदि विसे० । चदुषणं सरीराणं उक्क हिदि० संखेज्ज । यहिदि. विसे । सव्वत्थोवा समचदुर० उक्क हिदि । यहिदि० विसे० । णग्गोद• उक्क.
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स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे असातावेदनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। पुरुषवेद, हास्य और रति इनका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा इनका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे सोलह कषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है।
५६३. तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे नरकायु और देवायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यात. गुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है।
५९४. देवगतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे मनुष्यगतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नरकगति और तिर्यञ्चगतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । तीन जातियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे एकेन्द्रिय जाति और पञ्चेन्द्रिय जातिका उत्कृष्ट स्थिति बन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। आहारक शरीरका स्थितिवन्ध सवसे स्तोक है। इससे यत्स्थिवन्ध विशेष अधिक है। इससे चार शरीरोंका उत्कृष्ट स्थिति बन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। समचतुरस्त्र संस्थानका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थानका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध विशेष अधिक है।
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