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उक्करप खेतपरूवणा ५००. तेऊए देवाय-पाहारदुगं० खे । देवगदि ०४ उक्क० खेचं । अणु० दिवड्डचौद्द ० । इत्थि०-परिस० मणुसग०-पतिदि० पंचसंठा० श्रीरालि० अंगो०-छस्संघ०
आदाव--दोविहा०-तस-सुभग-दोसर-आदेज--तित्थय. -उच्चा०--तिरिक्ख० -मणुसायु० उक्क० अणु ० अट्ठचो० । सेसाणं उक्क० अणु ० अट्ठ-णव० । पम्माए देवायु--आहाग्दुगं खें। देवगदि०४ उक्क खेच। अणु ० पंचचो०। सेसाणं उक्क० अण० अट्ठ-णवचो सुकाए देवायुआहारदुगं ओघ देवगदि०४ उक्क० खेनं । अण० छच्चोदस० । सेसाणं उक्क० अण० छच्चोद०। ___ ५०१. भवसिद्धिया० ओघं। अब्भवसि० मदि० भंगो। सापणे देवायु प्रोघं । तिरिक्खमणसायु० उक० खेलें । अण. अट्ठचो । मणमगदि-मणसाण--उच्चा० उक्क० अणु० अट्टचॉ० । देवगदि०४ उक० खेलें । अण. पंचचोदम । सेसाणं उक्क० अण० अट्टबारह० । सम्मामि० देवगदि०४ उक्क० अणु० खे । सेसाणं उक० अणु० अट्ठची ।
५००. पीत लेश्यावाले जीवोंमें देवायु और आहारक द्विकका भङ्ग क्षेत्रके समान है। देवगति चतुष्ककी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे क्षौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुपवेद, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, पाँच संस्थान, औदीरिक अांगोपांग, छह संहनन, आतप, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर, आदेय, तीर्थङ्कर, उच्चगोत्र, तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु इनकी उत्कृष्ट और
वान कुछ कम आठ वटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पशन किया है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पद्मलेश्यावाले जीवोंमें देवायु और आहारकद्विकका भंग क्षेत्रके समान है । देवगति चतुककी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेप प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वठे चौदह राजु और कुछ कम नौ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शुक्ल ले यावाले जीवोंमें देवायु और आहारकद्विकका भंग ओघके समान है । देवगति चतुष्ककी उत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
५०१. भव्य जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग आपके समान है। अभव्य जीवोंमें मत्यज्ञानी जीवोंके समान है । सासादनसम्यग्दृष्टि जोवोंमें देवायुका भङ्ग अोधके समान है। तिर्यञ्चायु और मनुष्या युकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम
आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । देवगतिचतुष्ककी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच बटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेप प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम
आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें देवगतिचतुष्कको उत्कृट और अनुत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राज प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
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