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जहएणफोसणपरूवणा सव्वलो। सेसाणं जह० खेतं । अज० अणुक्कस्सभंगो।
५१४. पंचमण-तिण्णिावचि० इथि०-णस-पंचसंठा०-पंचसंघ०-अप्पसत्थ०-दूभग-दुस्सर-अणादें जह० अदु-बारह । अज० अणुक्कस्सभंगो । एइंदि०थावर० जह० अट्ठ-णवचो० । अज० अणुकरसभंगो । मणुसगदि०४ जह० अज० अट्ठचौदस० । एवं श्रादावं पि । सेसाणं पि जह० खे । अज० अणुक्कस्सफोसणभंगो। णवरि सुहुम० जह० लो० असंखेज्ज. सव्वलो० । वधिजोगि०-असचमोस० तसपज्जत्तभंगो।
५१५. कायजोगि०-ओरालिय० ओघ । णवरि ओरालियका० मणुसायु-तित्थयराणं चरज णत्थि । ओरालियमि० देवगदि०४-तित्थय० उकस्सभंगो । सेसाणं तिरिक्खोघं । णवरि एइंदि०-थावर०-सुहुम० जह० अज० खेतं । वेउब्वियका० थीणगिद्धि०३मिच्छ०-अणताणुपंधि०४ जह० अट्ठचो । अज० अणुक्कस्सभंगो। तिरिक्खगदि०४ जह० खेत्त। अज० अणुक्करसभंगो। इथि०-णवुस-पंचसंठा०-पंचसंघ०-अप्पके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है।
५१४. पांच मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवोंमें स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर और अनादेय इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका भङ्ग अनुत्कृष्टके समान है। एकेन्द्रय जाति और स्थावरकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है । मनुष्यगति चार की जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार आतपकी अपेक्षा भी स्पर्शन जानना चाहिए । शेष प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पशन क्षेत्रके समान है और अनुकृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अनुत्कृष्टके समान है । इतनी विशेषता है कि सूक्ष्मकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वचनयोगी और असत्यमृषावचनयोगी जीवोंका भङ्ग सपर्याप्त जीवोंके समान है।
५१५. काययोगी और औदारिककाययोगी जीवोंका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि औदारिककाययोगी जीवोंमें मनुष्यायु और तीर्थंकर प्रकृतियोंका राजुप्रमाण स्पर्शन नहीं है। औदारिक मिश्रकाययोगी जीवीं में देवगति चतुष्क और तीर्थङ्कर प्रकृतिका उत्कृष्टके समान है तथा शेष प्रकृतियोंका भग सामान्य तिर्यकचोंके समान है। इतनी विशेषता है कि एकेन्द्रिय जाति, स्थावर और सूक्ष्म इनकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। वैक्रियककाययोगी जीवोंमें स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चारकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका भङ्ग अनुत्कृष्टके समान है । तिर्यञ्चगति चारकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पशन क्षेत्रके समान है। अजधन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका
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