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उक्कस्सकालपरूवणा
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पवत्तस्स | अथवा सरीरपज्जत्तीए दिज्जदि त्ति तदो धुविगाणं उक० जह० अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखेज्ज० । एवं वेउच्चियमि० - आहारमि० । एवरि वेउव्वियमि० अणु० जह० अंतो०, उक्क० पलिदो० असंखेज्ज० । आहारमिस्से चत्तारि श्रंतो ० ।
५३१. आहारकायजोगि० सव्वपगदी उक्क० अणु० जह० एग०, उक्क० तो ० । वरि देवायु० उक्क० जह० एग०, उक्क० संखेज्जसम० । अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो० | एवं आहारमिस्से देवायु० ।
५३२. कम्मगे देवगदि ०४ - तित्थय० उक्क० अणु० जह० एग०, उक्क० संखेज्जसम० ० । सेसाणं उक्क० जह० एग०, उक्क० श्रावलियाए असंखेज्ज० | अणु० सव्वद्धा ।
५३३. अवगदवेदे सव्वाणं उक्क० अणु० जह० एग०, उक० अंतो० । एवं सुहुमसंप० ।
५३४. आभि० - सुद० - ओधि० सादावे ० - हस्स-रदि- आहारदुग-थिर-सुभ-जसगि०तित्थय • श्रघं । मणुसायु० देवोघं । देवायु० श्रोघं । सेसाणं सव्वाणं उक्क० जह०
स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल अधः प्रवृत्तके सर्वदा है । अथवा शरीरपर्याप्ति में यह काल दिया जाता है तो ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवों का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । तथा आहारकमिश्र काययोगी जीवोंमें चारों ही काल अन्तर्मुहूर्त हैं ।
५३१. अहारककाययोगी जीवों में सब प्रकृतियोंका उत्कृष्ट और अनुष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इनकी विशेषता है कि देवायुकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में देवायुकी मुख्यतासे काल जानना चाहिए ।
५३२. कार्मणकाययोगी जीवोंमें देवगतिचतुष्क और तीर्थङ्कर प्रकृति की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है ।
५३३. श्रपगतवेदी जीवों में सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार सूक्ष्मसांपरायिक संयत जीवोंके जानना चाहिए ।
५३४. श्रभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में साता वेदनीय, हास्य, रति श्राहारकद्विक, स्थिर, शुभ, यशः कीर्ति और तीर्थङ्कर इंजका भङ्ग श्रधके समान है । मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है । देवायुका भङ्ग श्रधके समान है। शेष सब
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