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महाबंधे द्विदिबंधाहियारे
सव्वमहुमाणं च ।
५४३. पंचिंदिय-तस० २ खवगपगदीणं ओघं । सेसाणं पंचिदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो | एवं इत्थि० - पुरिस० । वरि इत्थवे तित्थय० जह० जह० एग०, उक्क० अंतो० ।
५४४. पंचप्रण० - तिरिणवचि० पंचणा० एवदंसरण -सादासाद०-२ -- मोह०२४-देवगदि०४- पंचिंदि० -तेजा० क० - समचदु० - वरण०४- अगु०४-पसत्थवि०-तस०४-थिराथिर - सुभासुभ-सुभग-मुस्सर-यादे० ० - जस० - अजस० - णिमि० - तित्थय० - उच्चागो ० पंचंत० जह० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अज० सव्वद्धा । इत्थवे ० -- एस०तिरिणगदि चदुजादि-ओरालि० पंचसंठा०--ओरालि ० अंगो० छस्संघ० - तिरिणआणु०आदाउज्जो०० - अप्पसत्थ० थावरादि०४- दूर्भाग- दुस्सर - अणादें - णीचा० जह० जह० एग०, उक्क० पलिदो असंखे० । ज० सव्वद्धा । चदुत्रयु० पंचिदियतिरिक्खभंगो । वरि ज ० जह० एग० । दोवचि० खवगपगदीगं जह० जह० एग०, उक्क० अंतो० [० | अज० सव्वद्धा । चदुत्रयु० मणजोगिभंगो । सेसाणं तसभंगो ।
काल सर्वदा है । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक, निगोद, वादर वनस्पतिकायिक, बादर निगोद और इनके पर्याप्त - अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर अपर्याप्त और सब सूक्ष्म जीवोंके जानना चाहिए ।
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५४३. पञ्चेन्द्रियद्विक और सद्विक जीवोंमें क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग श्रोघके समान है। शेष प्रकृतियों का भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान है । इसी प्रकार स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेदी जीवोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । ५४४. पाँच मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावेदनीय, असातावेदनीय, चौबीस मोहनीय, देवगतिचार, पञ्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरम्न संस्थान, वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्तविहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशःकीर्ति,
यशःकीर्ति, निर्माण, तीर्थङ्कर, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इनकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । स्त्रोवेद, नपुसंकवेद, तीन गति, चारजाति, श्रदारिक शरीर, पाँच संस्थान, औदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, तीन आनुपूर्वी, श्रातप, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति, स्थावर श्रादि चार, दुर्भग, दुःस्वर, श्रनादेय और नीचगोत्र इनकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असं ख्यातवें भाग प्रमाण है । जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । चार श्रायुओं का भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोके समान है । इतनी विशेषता है कि जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है । दो वचनयोगवाले जीवों में क्षपकप्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति के बन्धक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । जघन्य स्थिति बन्धक जीवोंका काल सर्वदा है । चार आयुओं का भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियों का भङ्ग त्रस जीवोंके समान है ।
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