________________
२३०
__ महाबंधे हिदिबंधाहियारे अंगो०-छस्संघल-दोविहा०-तस-सुभग-दोसर-आदें उक० अणु० अट्ठ-बारहचोंहसः । णिरय-देवायु०-तिएिणजादि० उक्क० अणु० खेत्तभंगो । तिरिक्ख-मणुसायु० उक्क० खेत्तभंगो । अणु० अट्ठ-चौद्द । वेवियछ० मदिभंगो । तिरिक्खग--ओरालि०-- तिरिक्खाणु० उक० अट्ट-तेरहचों । अणु० अट्ठ-तेरहचों सव्वलो० । मणुसग०-- मणुसाणु०-आदाव०--उच्चा० उक्क. अणुं० अडचो०। एहदि०.-थावर० उक्क० अट्ठ-णवचो अणु० अट्ठ० सवलो० | उज्जो०-बादर०-जसगि० उक्क० अणु० अटु. तेरह० । सुहुम-अपज्जत-साधार० उक्क० अणु० लो० असंखें सवलो० ।
४६७. आभिणि०--सुद०-श्रोधिणा० देवायु०--आहारदुर्ग उक्क. अण. ओघं । देवगदि०४ उक्क० ओघ० । अणु० छच्चोंदस० । तित्थय० ओघं । सेसाणं उक्क० अणु० पञ्चेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दोविहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर और श्रादेय इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राज़ और कुछ कम बारह बटे चौदह राज़ क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकायु, देवायु और तीन जाति इनकी उत्कृष्ट और अनत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तिर्यश्चायु
और मनुष्यायुकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियक छहकी मुख्यतासे स्पर्शन मत्यज्ञानियोंके समान है। तिर्यञ्चगति औदारिकशरीर और तिर्यचगत्यानुपूर्वीकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राज़, कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप और उच्चगोत्र इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु दोत्रका स्पर्शन किया है । एकेन्द्रियजाति और स्थावर इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योत, वादर और यशःकीर्ति इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
४६७. आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें देवायु और आहारक द्विककी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन अोधके समान है। देवगति चतुष्ककी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन ओघके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू दोत्रका स्पर्शन किया है। तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओधके समान है। शेप प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दष्टि, क्षायिक सम्यग्दष्टि,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org