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उक्कस्सफोसण. परूवणा
२२७ अंगो०-छस्संघ०-वएण०४-तिरिक्खाणु०-अगु०४-उज्जो०-दोविहा०-तस०४-थिरा दिछयुग०-णिमि०-णीचा०-पंचंत० उक० बारहचों । अणु० सव्वलो०। मणुसगदितिएिणजादि-मणुसाणु० उक्क० अणु० खेत्तं । सुहुम-अपज्जत्त-साधार० उक्क० लो० असंखें । अणु० सबलो० । देवगदि०४-तित्थय० उक० अणु० खेतं । एइंदि०आदाव-थावर० उक्क० दिवड्डचोदस० । अणु० सव्वलो०।
४९४, इस्थिवे० पंचणा०-णवदंसणा०-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक०तेजा०-२०-हुंडसं०-वण्ण०४-अगुरु०-पज्जत्त-पत्तेग०-अथिरादिपंच-णिमि०-णीचा०पंचंत० उक० अट्ठ-तेरहचों । अणु० अट्ठचौ० सव्वलो० । सादा०-हस्स-रदि-थिरसुभ० उक्क० अणु० अट्ठचौदस० सव्वलो० । इथिवे०-पुरिस०-मणुसग०-पंचसठा०ओरालि० अंगो०-छस्संघ०-मणुसाणु०-आदाव --पसस्थवि० - सुभग--सुस्सर--प्रादेंउच्चा० उक० अणु० अट्ठचोंदस० । णिरय-देवायु०-तिण्णिजादि-आहार०२-तित्थय० उक्क० अणु० खेत्तभंगो। तिरिक्ख-मणुसायु० उक्क० खेतं । अणु० अट्ठचोद्दस० । तिर्यश्वगत्यानु पूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, उद्योत, दो विहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि छह मुगल, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । मनुष्यगति, तीन जाति और मनुष्यगत्यानुपूर्वी इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृ बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवगति चतुष्क और तीर्थकर इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। एकेन्द्रिय जाति, आतप
और स्थावर इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
४९४ स्त्रीवेदवाले जीवोंमें पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असाता वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कपाय, पाँच नोकपाय, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलधु, पर्याप्त, प्रत्येक, अस्थिर आदि पांच, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु और कुछ कम तेरह बदे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। साता वेदनीय, हास्य, रति, स्थिर और शुभ इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह राजु और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुपवेद, मनुष्यगति, पांच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुरवर, आदेय और उच्चगोत्र इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ वटे राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। नरकायु, देवायु, नीन जाति, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका पर्शन क्षेत्रके समान है। तियश्चायु अंर मनुष्यायुकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका पर्शन क्षेत्रके समान है। अनुत्कृष्ट स्थिनिके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह गजु क्षेत्र का स्पर्शन किया है। वैक्रियिक छहको मुख्यतासे स्पर्शन ओषके समान है। तियश्चगति,
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