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उक्कस्सफोसणपरूवणा
२२३ अणु० सत्तचो । मणुसायु०-मणुसगदि-मणुसाणु०-उच्चा० उक्क० अणु० लोग० असंखेन्ज ।
४८६ पुढवि०-आउ०-तेउ०-बाउ० थावरपगदीणं उक० लोग. असंखेंज. सव्वलो० । अणु० सव्वलो। तिरिक्ख-मणुसायु० तिरिक्खोघं । उजो०-बादर०जस० उक्क० सत्तचो० । अणु० सव्वलो० । तसपगदीणं आदाव उक्क लोग० असंखेज । अणु ० सबलो० ।
४८७. चादरपुढवि०-आउ०-तेउ०-वाउ०-थावरपगदीणं उक्क० लोग० असंखेज० सव्वलो० । अणु० सव्वलो० । दोआयु० खेत्तभंगो। उजो०-बादर०-जस० उक्क० अणु० लोग० असंखेज० सत्तचोदस । सेसाणं उक्क० अणु० लोग० असंखेजः ।
४८८. बादरपुढवि०-आउ०-तेउ०-वाउ० अपज्जत्ताणं थावरपगदीणं उक्क० अणु० सव्वलो० । उजो०-चादर०-जसगि० उक्क० अणु० सत्तचोदस० । सेसाणं उक्क० अणु० लोग० असंखे० । णवरि वाऊणं यम्हि लोगस्स असंखेज० तम्हि लोगस्स संखेज० कादव्यो। चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके अंसस्यातवेंभाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
४८६. पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंमें स्थावर प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तियश्चायु और मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तियश्चोंके समान है। उद्योत, बादर और यशःकीर्ति इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातवटे चौदह राजू क्षत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। त्रसप्रकृतियाँ और
आतप इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा अनुकृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षत्रका स्पर्शन किया है।
४८७. बादर पृथ्वीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक जीवों में स्थावर प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण
और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयुका भङ्ग क्षेत्रके समान है। उद्योत, बादर और यशःकीर्ति इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवेंभाग प्रमाण और कुछ कम सातबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
४८८. बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त और बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीवोंमें स्थावर प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। उद्योत, बादर और यशःकीर्ति इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है तथा शेष प्रकृतियोंकी उत्कृट और अनुकृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग
माण क्षेत्रका पशन किया है । इतनी विशेषता है कि जहाँ पर लोकका असंख्यात भाग प्रमाण स्पशन कहा है वहाँ पर वायुकायिक जीवोंके लोकके संख्यातवाँभाग प्रमाण पशन कहना चाहिए।
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