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उक्करस फोसपरूवणा
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अप्पसत्थ० - दुसरं गिरयगदिभंगो । उज्जो ०. ० - जस० उक० अणु० सत्तचोद्दस ० । बादर० उक्क० बच्चोंदस० । अणु० तेरह चौदस० । सेसाणं उक्क० श्रणु ० खेतभंगो ।
४८२. पंचिदियतिरिक्खश्रपञ्ज० पंचरणा० - वदंसणा ० - सादासाद० - मिच्छ०सोलसक० स०-हस्स-रदि-प्ररदि-सोग-भय-दुगुं० - तिरिक्खगदि - एइंदि० - ओरालि०
तेजा० - क० - हुंड० - वण्ण ०४ - तिरिक्खाणु ० - प्रगु० ०४ - थावर - सुहुम-पञ्जत्तापजत्त-प - पत्ते० साधार० - थिरायिर - सुभासुभ- भग- श्रणादे० - अजस० - णिमि० - णीचा पचंत० उक्क० अणु • लो० श्रसंखे० सव्वलो० । उज्जो०- बादर जसगि० उक्क० अणु ० सत्तचोद्दस० । साणं उक्क० अणु • लो० असंखे० । एवं मणुसअपजत्त - सव्वविगलिंदि० - पंचिंदि०तस अपजत । बादर-बादरपुढवि००- ग्राउ० तेउ०० - वाउ०- बादरवणप्फ दिपतेय० पञ्जन्ता० ।
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४८३ मणुस मणुसपजच मणुसिणीसु पंचणा० णवदंसणा० - प्रसादा० - मिच्छ०सोलसक० - णवुं स ० - अरदि - सोग - भय - दुगुं ० - तेजा० क० - - हुंड० ० - वण्ण० ४- अगु० ४
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कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अप्रशस्तविहायोगति और दुःश्वर इनकी मुख्यतासे स्पर्शन नरकगतिके समान है । उद्योत और यशः कीर्तिकी उत्कृष्ट और अनुकृष्ट थिति के बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । बादर प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है ।
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४८२. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें पाँच ज्ञानवरण, नौ दर्शनावरण, साता वेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मरण शरीर, हुएडसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यब्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुभंग, अनादेय, श्रयशःकीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवेंभाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। उद्योत, बादर और यशः कीर्तिः इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवेंभाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त, सब विकलेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, त्रस अपर्याप्त, बादर पृथ्वी कायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त और बादर वनस्पति कायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंके जानना चाहिए ।
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४८३. मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, अस्थिर आदि
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