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जहएणपरिणामपरूवणा
२०६ असंखेजा । तित्थय० दो वि पदा संखेजा। सेसाणं उक्क० अणु वि०म० असंखेजा।
४६० तेउ-पम्मासु मणुसायु० देवोघं । देवायु० उ०ढि०व० संखेजा । अणु. असंखेजा । सेसाणं उ० अणुहि ०६० के० १ असंखेजा । सुक्काए खड़गे दोभायु०आहार०२ दो पदा संखेजा। सेसाणं उक्क० अणु० असंखेजा। सासणे तिरिक्ख-देवायु० उक्क० संखेजा। अणु ट्ठि०० असंखेजा। मणुसायु० दो विपदा संखेजा । सेसाणं उक्क० अणु० असंखेज्जा । सम्मामिच्छा० सव्वाण उक्क० अणु० असंखेजा । भसण्णीसु णिरय-देवायु० उक० अणु० असंखेजा । तिरिक्खायु० उक्क० असंखेजा । अणु० अणंता । सेसाणं अोघं ।
एवं उकस्सपरिमाणं समत्तं। ४६१ जहण्णए पगदं । दुवि०-योघे० आदे० । ओघे० पंचणा०-चदुदंसणा०सादा०-चदुसंज०-पुरिस०-जस०-उच्चा०-पंचंत० जहटिबंधमा केत्तिया ? संखेजा। अज० केत्ति०? अणंता० । तिण्णि आयु०-वेउ व्वियछ० जह० अज० असंखेजा। आहार० २ उकस्सभंगो। तित्थय० ज०ढि० संखेजा। अज० असंखेजा। तिरिक्खगदितिरिक्खाणु०-उजो०-णीचा. जह० असंखेजा। अज० अणंता। सेसाणं जह० अज. स्थितिके बंधक जीव असंख्यात हैं। तीर्थङ्कर प्रकृतिके दोनों ही पदवाले जीव संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बंधक जीव असंख्यात हैं।
४६०. पीत और पद्म लेश्या में मनुष्यायुका भंग सामान्य देवोंके समान है। देवायुकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। शुक्ल लेश्या और क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीवोंमें दो आयु और श्राहारक द्विकके दोनों ही पदवाले जीव संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीव असंख्यात हैं। सासादन सम्यक्त्वमें तियश्चायु और देवायुकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं। मनुष्यायुके दोनों ही पदवाले जीच संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं । असंज्ञी जीवोंमें नरकायु और देवायकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं। तिर्यञ्चायुकी उत्कृष्ट स्थितिके बंधक जीव असंख्यात हैं। अनुकृष्ट स्थितिके बन्धक जीव अनन्त हैं। शेष प्रकृतियोंका भन्न ओघ के समान है।
__ इस प्रकार उत्कृष्ट परिमाण समाप्त हुआ। ४६१. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, साता वेदनीय, चार सज्वलन, पुरुपवेद, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तरायकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। तीन आयु और वैक्रियिक छहकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं। आहारक द्विकका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। तीर्थकर प्रकृतिकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव संख्यात हैं। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं। तिर्यव्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्रकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीव अनन्त हैं। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीव
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