________________
२१०
महाबं द्विदिबंधाहियारे
O
अनंता । एवं श्रोघभंगो कायजोगि ओरालि० - बुंस० - कोधादि ०४ - प्रचक्खु०अवसि० - आहारगे ति । यवरि ओरालि० वित्थय० उकस्तभंगो |
-
४६२ गिरएसु उक्कस्सभंगो । तिरिक्खेसु तिष्णिश्रायु ० - वेउव्वियछ० - तिरिक्खगदि ४ मोघं । सेसाणं जह० अ० श्रणंता । सव्वपंचिंदियतिरिक्खेषु सव्वपगदीणं जह० अज० असंखेजा । एवं पंचिदिय०तिरिक्खभंगो सव्वापजत्त - विगलिंदि० चदुष्णं कायाणं चादरवणदिपत्ते ० ।
४६३ मणुसेसु खविगाणं जह० संखेजा । अज० श्रसंखेजा । दो आयुवेउव्वियछ०-- आहार०२ - तित्थय० दो पदा संखेजा । सेसाणं दो विपदा श्रसंखेजा । मणुस पज्जत - मणु सिणीसु उक्करसभंगो ।
1
I
४६४ एइंदि० तिरिक्खगदि - तिरिक्खाणु-उज्जो ० -णीचा० श्रधं । सेसाणं जह० श्रज० अ ंता । एवं सव्ववणप्फदि - णियोदाणं । एवरि तिरिक्खगदि०४ जह० ज० श्रता ।
४६५ पंचिदिय -तस०२ खविगाणं तित्थय० जह० संखेजा । अज० श्रसंखेज्जा । आहार०२ श्रधं । सेसाणं जह० अज० असंखेजा ।
४६६ पंचमण - तिण्णिवचि० पंचणा०-णवदंसणा ० - सादासाद० - चदुवीसमोह०अनन्त हैं । इसीप्रकार ओधके समान काययोगी, औदारिककाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि औदारिक काययोगमें तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग उत्कृष्टके समान है ।
४६२. नारकियोंमें उत्कृष्टके समान भङ्ग है । तिर्यखों में तीन आयु, वैक्रियिक छह, तिर्यञ्चगति चारका भंग श्रधके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीव अनन्त हैं । सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं । इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चके समान सब अपर्याप्त, विकलेन्द्रिय, चारकायवाले और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवोंके जानना चाहिए ।
४६३. मनुष्योंमें क्षपक प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव संख्यात हैं । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं । दो आयु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिके दो पदवाले जीव संख्यात हैं । तथा शेष प्रकृतियोंके दोनों ही पदवाले जीव असंख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है ।
४६४ एकेंद्रियोंमें तिर्यञ्चगति, तियचगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्रका भङ्ग ओघ के समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बंधक जीव अनंत हैं । इसी प्रकार सब वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चगति चतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बंधक जीव अनंत हैं ।
४६५ पंचेंद्रिय, पंचेंद्रियपर्याप्त, त्रस और सपर्याप्त जीवोंमें क्षपक प्रकृतियों और तीर्थङ्कर प्रकृतिकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीव संख्यात हैं । अजघन्य स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं । आहारद्विकका भंग के समान है। तथा शेष प्रकृतियों की जघन्य और अजघन्य स्थिति के बन्धक जीव असंख्यात हैं ।
४६६. पाँच मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण,
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org