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महाधे द्विदिबंधाहिया रे
मसा०-- मणुसगदि - मणुसाणु ० - उच्चा० श्रघं । बादरए इंदियपज्जत्तापज्जत ० थावरपगदी उक० प्रणु० सव्वलो० । मणुसायु० - मणुमर्गादि-मधुला ०--उच्चा० उक्क० अणु० लोग० असंखेज्ज० । तिरिक्खायु० उक्क० लोग० श्रसंखेज्ज० । ० लोग० संखेज दि० । सेसाणं उक्क) अणु० लोग० संखेजा० । सुहुमएईदिय-पजत्तापज्जत • तिरिक्ख - मणुसायु श्रघं । सेसाणं सव्वपगदीणं उक्क० अ० सव्वलोगे । एवं सव्वसुहुमाणं ।
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४७३ पुढवि० - उ० – तेउ० - वाउ० सव्वाणं श्रघं । बादरपुढविका० - आउ०उ०- वाउ०- बादरवणष्फ दिपत्ते ० थावरपगदीर्ण उक्क० लो० श्रसंखेज्ज० । अणु० सव्वलो० । तिरिक्खायु० - तसपगदीणं उक्क० श्रणु० लो० श्रसंखेज ० । बादरपुढ वि- ० उ०- ते उ-वाउ०- बादरवणफ दिपत्ते ० पज्जत्ता ० विगलिंदियभंग | बादरपुढवि०--: ० आउ० तेउ०- वाउ०- बादरवणष्क दिपत्ते ० अपज्जत्ता० थावरपगदीणं उक्क० अणु० सव्वलो० । मणुसायु० श्रघं । तिरिक्खायु० तसपगदीणं च लो॰ असंखेज्ज० । वरि बादरवाऊणं श्रायु० अणु० लो०
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उक्क० अणु ० जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। तिर्यश्चायु, मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रका भंग ओघके समान है । बादर एकेन्द्रिय और इनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें स्थावर प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । तिर्यवायुकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यात बहुभाग प्रमाण है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय और इनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें तिर्यवायु और मनुष्यायु का भङ्ग ओघ के समान है । तथा शेष सब प्रकृतियों की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । इसी प्रकार सब सूक्ष्म जीवोंके जानना चाहिए ।
४७३. पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, और वायुकायिक जीवोंमें सब प्रकृतितियों का भङ्ग ओघके समान है । बादर पृथ्वीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर वायुकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर जीवों में स्थावर प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवों का क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीवों का क्षेत्र सब लोक है । तिर्यचाय और सप्रकृतियों की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अभिकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंका भङ्ग विकलेन्द्रिय जीवोंके समान है । बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, वादर वायुकायिक अपर्याप्त, और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त जीवोंमें स्थावर प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। मनुष्यायुका भङ्ग के समान है । तिर्यब्चायु और बस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोक के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । इतनी विशेषता है कि वादर वायु
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