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जहरणपरत्थाणबंधसएिणयासपरूवणा
१८९ ४०७. कोध-माण-पाया० अोघं । रणवरि खवगपगदीणं इत्थिवेदभंगो । मोह० विसेसा। कोह] कोधसंज० ज०हि वं०] तिएिणसंज- णि०व०णि जहएणा। पुरिस० अोघं । मारणे माणसंज० ज०हि बं० दोगणं संज.णि बं० णि जहएणा० । मायाए मायसंज० ज०ट्टि बं० लोभसंज० णि० बं० णि० जहएणा । [ लोभे लोभसंज. ] मूलोघं ।
४०८ मदि०-सुद० तिरिक्खोघं । विभंगे आभिणिबोधि० ज०हि बं० चदुणागवदंसणा०--सादा०-मिच्छ०-सोलसक० --पंचरणोक०--देवगदिपसत्थहावीस-उच्चा०पंचंत० णि० वं । तं तु । एवमेदाओ ऍकमेक्कस्स । तं तु. ।
४०६. असादा० ज०हि०५० पंचणा०-णवदंसणा--मिच्छत्त-सोलसक०-भयदु०-पुरिस०-पंचिंदि०-तेजा०-क०-समचदु०--वएण ४--अगु०४-पसत्थ-तस०४-सुभग
अवस्थामें वह नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है। चार सज्वलनका भङ्ग मूलोधके समान है।
४०७. क्रोध, मान और माया कषायवाले जीवोंमें अोधके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग स्त्रीवेदके समान है। मोहनीयकी कुछ विशेषता है । क्रोधकषायमें क्रोध संज्वलनकी जघन्य स्थितिका वन्धक जीव तीन संज्वलनोंका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है। पुरुषवेदका भङ्ग ओघके समान है। मान कषायमें मान संज्वलनकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव दो सैज्वलनों का नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे जघन्य स्थितिका वन्धक होता है। माया कषायमें माया सज्वलनकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव लोभ सज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है। लोभ कषायमें लोभ सज्वलनका भङ्ग मूलोघके समान है।
४०८. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें अपनी सब प्रकृतियोंका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है। विभङ्ग ज्ञानी जीवोंमें आभिनिबोधिक ज्ञानावरणकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव चार ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, साता वेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, देवगति आदि प्रशस्त अट्ठाईस प्रकृतियाँ, उच्चगोत्र और पाँच अन्तराय इनका नियमसे बन्धक होता है। किन्तु वह जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है,
नयमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार इन सब प्रकृतियोंका परस्पर सन्निकर्प जानना चाहिए। किन्तु ऐसी अवस्थामें वह जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है, तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिकतक स्थितिका बन्धक होता है।
४०९. असातावेदनीयको जघन्य स्थितिका बन्धक जीव पाँच मानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, पुरुषवेद, पञ्चेन्द्रिय जाति, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्त विहायो. गति, त्रस चतुष्क, सुभग, सुस्वर, प्रादेय, निर्माण और पाँच अन्तराय इनका नियमसे For Private & Personal Use Only
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