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महाबंधे टिदिबंधाहियारे ४४८. एइंदिएसु [मणुसग०-] मणुसाणु०-तिरिक्खगदि-तिरिक्वाणु०-उज्जो०णीचा ओघो। सेसं उक्कस्सभंगो । पुढवि०-आउ०-तेउ०-वाउ०-बादरपुढवि०-ग्राउ.तेउ०-वाउ० तिरिक्खायु० ओघं। सेसं उक्कस्सभंगो। बादरपुढवि०-पाउ०-तेउ०-वाउ०बादरवणप्फदिपत्तेय अपज्जत्त-सव्वसुहुम-बणप्फदि-णियोदे मणुसायु ओघं। सेसाणं अस्थि बंधगा य अबंधगा य । सेसाणं णिरयादि याव सरिण ति उक्कस्सभंगो।
एवं जहएणयं समत्तं । ४४६. भागाभागं दुविधं-जहएणयं उक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं। दुवि०. ओघे० आदे० । अोघेण तिरिणायु०-वेउव्वियछ--तित्थय० उक्क हिबंधगा सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? असंखेंजदिभागो । अणु०हिबंधगा सव्वजी० के. ? असंखेज्जा भागा। आहार--आहार अंगो० उ०हिबं० सव्वजी० के० ? संखेजदिभा० । अणुहि०६० के० 'संखेजा भा०। सेसाणं पगदीणं उहि बं० सबजी० के ? अरणंतो भागो। अणु हि०७० सव्व० के०? अणंता भागा। एवं अओवभंगो तिरिक्खोघं कायजोगि०-ओरालि --अोरालियमि०-कम्मइ०--णबुंस०-कोधादि०४मदि०-सुद०-असंजद-अचक्खुदं०-तिएिणले--भवसिद्धि०--अब्भवसि०--मिच्छादि०
४४८. एकेन्द्रियों में मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तिर्यश्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत और नीचगोत्रका भङ्ग ओघके समान है तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, बादर पृथ्वीकायिक, बादरजलकायिक, बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक जीवोंमें तिर्यञ्चायुका भङ्ग ओघके समान है । तथा शेष प्रकृतियोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त बादर जलकायिक अपर्याप्त, बादर अग्निकायिक अपर्याप्त, बादर वायकायिक अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर अपर्याप्त, सब सूक्ष्म, वनस्पति कायिक और निगोद जोवोंमें मनुष्यायुका भङ्ग श्रोधके समान है। शेष प्रकृतियोंके बन्धक जीव होते हैं और अवन्धक जीव होते हैं। नरकगतिसे लेकर संशी मार्गणा तक शेष सब मार्गणाओंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है।
इस प्रकार जघन्य भङ्गविचयानुगम समाप्त हुआ। ४४९. भागाभाग दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। इसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे तीन आयु, वैक्रियिक छह और तीर्थङ्कर प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण है ? असंख्यातवे भाग प्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? असंख्यात बहुभाग प्रमाण हैं । आहारक शरीर और आहारक आङ्गोपाङ्गके उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? संख्यातवें भाग प्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण है ? संख्यात बहुभाग प्रमाण हैं। शेष सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? अनन्तवें भाग प्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? अनन्त बहुभाग प्रमाण हैं। इसी प्रकार अोधके समान सामान्य तिर्यश्च, . काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, तीन लेश्यावाले,
१ मूलप्रतौ संखेजदिभाग० इति पाठः । २ मूलप्रनो अणता भागा इति पाठः ।
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