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महाबंधे ट्ठिदिधंधाहियारे अणादेजाणं एदेणेव विधिणा विदियपुढविभंगो।
२८४. तिरिक्खेसु पंचणा०--णवदंसणा--दोवेदणी०--चदुअआयु०--दोगोद.पंचंत० णिरयोघं । मिच्छत्त० जहिबं. सोलसक-पुरिसवेद-हस्स-रदि-भय-दुगु. णि वं० । तं तु । एवमेदाओ ऍक्कमेकस्स । तं तु० ।
२८५. इत्थि० ज०हि०वं मिच्छ०-सोलसक-भय-दुगु णि. बं. असंखेज्जदिभा० । हस्स-रदि-अरदि-सोग० सिया० असंखेंज्जदिभा० । एवं णवूस० ।
२८६. अरदि० ज०हि०० मिच्छत्त-सोलसक-पुरिस-भय-दुगु० णि. बं. असंखेजदिभा० । सोग० णि वं० । तं तु० असंखेजदिभागब्भहियं बं० । एवं सोग।
२८७. णिरयगदि० ज०हिवं. पंचिंदि०-तेजा०-क०-हुड०-वएण०४-अगु०४होता है। पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेय इनका इसी विधिसे दूसरी पृथिवीके समान भङ्ग है।
२८४. तिर्यञ्चोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, दो वेदनीय, चार आयु, दो गोत्र और पाँच अन्तराय इनका भङ्ग सामान्य नारकियोंके समान है। मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव सोलह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय और जुगुप्सा इनका नियमसे वन्धक होता है। किन्तु वह जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी वन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य, एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है । इस प्रकार इनका परस्पर सन्निकर्ष जानना चाहिए। किन्तु ऐसी अवस्थामें वह जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिकतक स्थितिका बन्धक होता है।
२८५. स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, और जुगुप्सा इनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य असंख्यातवाँ भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है। हास्य, रति, अरति और शोक इनका कदाचित् बन्धक होता है
और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो नियमसे अजघन्य असंख्यातवाँ भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार नपुंसक वेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
२८६. अरतिकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्सा इनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य असंख्याता भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है । शोकका नियमसे बन्धक होता है। किन्तु वह अजघन्य असंख्यातवा भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार शोककी मुख्यतः से सन्निकर्ष जानना चाहिए।
२८७. नरकगतिकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव पञ्चेन्द्रिय जाति तैजस, शरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, अप्रशस्त विहायोगति, प्रस
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