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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे
सिया० संखेज्जगु० । वज्जणारा ० सिया० । तं तु० । [ एवं ] वज्जणा । एवं चेव सादिय० । वरि पारायण ० सिया० । तं तु० । वज्जणारा० सिया० संखेज्जभाग०भ० । एवं पारा० । खुज्ज० ज० द्वि०बं० एग्गोदभंगो । वरि वज्जणारा ० सिया० संखेज्जभाग भ० । अद्धणारा० सिया० । तं तु० । एवं श्रद्धणारा० । वामण० ज० द्वि० बं० णग्गोदभंगो । वरि खीलिय० सिया० । तं तु० । एवं वीलिय० । सेसारणं सोधम्मभंगी । एवं वेउव्वियमिस्से । वरि तिरिक्खगदि - तिरिक्खाणु० - उज्जोव० सिया० संखेज्जभाग० ।
होता है तो जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और श्रजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि जघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमको जघन्य की अपेक्षा अजघन्य, एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार वज्रनाराचसंहननकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार स्वाति संस्थानकी मुख्यतासे भी सन्निकर्ष जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि नाराचसंहननका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रवन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि जघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य, एक समय अधिक से लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है । वज्रनाराच संहननका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो नियमसे जघन्य संख्यातवाँ भाग अधिक स्थितिका बन्ध होता है । इसीप्रकार नाराच संहननकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। कुब्जकसंस्थानकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवकी मुख्यतासे सन्निकर्ष न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थानके समान
। इतनी विशेषता है कि वज्रनाराचसंहननका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् बन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो नियमसे जघन्य संख्यातवां भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है । अर्धनाराच संहननका काचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रवन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियम से जघन्यकी अपेक्षा श्रजघन्य एक समय श्रधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवां भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है । इसीप्रकार अर्धनाराच संहननकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । वामन संस्थानकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवकी मुख्यतासे सन्निकर्ष न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थानके समान है । इतनी विशेषता है कि कीलक संहननका कदाचित बन्धक होता है और कदाचित प्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि
जघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा श्रजघन्य एक समय अधिक से लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार कीलक संहननकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । शेष कर्मोंका भङ्ग सौधर्म कल्पके समान है । इसी प्रकार वैक्रियिक मिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और उद्योत इनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रवन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो नियम से श्रजघन्य संख्यातवाँ भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है ।
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