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जहण्णसत्थाणपंधसण्णियासपरूवणा
१५१ ३२०. वेउव्वियकायजोगी० सत्तएणं कम्माणं सोधम्मभंगो। तिरिक्वगदि. ज०हि०० पंचिंदि०-अोरालि०--तेजा-क०-समचदु०-ओरालिअंगो०--वज्जरि०वएण०४--अगु०४--पसत्थ०--तस०४--थिरादिछ--णिमि० णि. बं. संखेंजगु० । तिरिक्वाणु० पि. बं० । तं तु० । उज्जो सिया० । तं तु । एवं तिरिक्वाणु०उज्जो० । मणुसगदी सोधम्मभंगो । एइंदिय-आदाव-थावर० सोधम्मभंगी।
३२१. णग्गोद० जहि बं. पंचिंदि०--ओरालि-तेजा-क०-ओरालि. अंगो०-वरण ४-अगु०४-पसथ -तस०४-सुभग-मुस्सर-आदे०-णिमि.णि० बं. संखेज्जगु० । दोगदि-वजरि०-दोग्राणु-उज्जो --थिराथिर-मुभासुभ-जस-अजस०
है । यदि बन्धक होता है तो जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवां भाग अधिक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक प्राङ्गोपाङ्ग, देवगत्यानुपूर्वी और तीर्थकर प्रकृतिकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
३२०. वैक्रियिक काययोगी जीवोंमें सात कर्मोंका भङ्ग सौधर्म कल्पके समान है। तिर्यञ्चगतिकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु चतुष्क, प्रशस्तविहायोगति, सचतुष्क, स्थिर आदि छह और निर्माण इनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य संख्यातगुणी अधिक स्थिति का बन्धक होता है। तिर्यश्चगत्यानुपूर्वीका नियमसे बन्धक होता है किन्तु वह जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है। उद्योतका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित प्रबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और उद्योतकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । मनुष्य गतिका भङ्ग सौधर्म कल्पके समान है। एकेन्द्रिय जाति, आतप और स्थावर इनकी अपेक्षा सन्निकर्ष सौधर्म कल्पके समान है।
३२१. न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थानकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव पञ्चेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, औदारिक प्राङ्गोपाङ्ग, वचतक.. चतष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, सुभग. सुस्वर, श्रादेय और निर्माण इनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य संख्यातगुणी अधिक स्थितिका बन्धक होता है। दोगति, वज्रर्षभनाराचसंहनन, दो आनुपूर्वी, उद्योत, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यश-कीर्ति
और अयश-कीर्ति इनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् प्रबन्धक होता है। यदि बन्धक होता है तो नियमसे अजघन्य संख्यातगुणी अधिक स्थितिका बन्धक होता है । वज्रनाराचसंहननका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् प्रबन्धक होता है। यदि बन्धक
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