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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे
सिया संखेज्जदिभागू० । श्रद्धणारा० सिया० । तं तु० । एवं अद्धणारा० । वामणसंठा० तं चैव । वरि खीलिय० सिया० । तं तु । असंपत्त० उज्जो ० सिया० संखेज्जदिभागू० । एवं खीलिय० ।
उक्क० द्विदिवं ०
१३५. ओरालि० अंगो० पंचरणा० णवदंसणा ० असादा०मिच्छ० - सोलसक० - कुंस० - अरदि- सोग--भय- दुगु० - तिरिक्खगदि - पंचिदियजादिओरालिय० - तेजा० क ० हुड ० - संपत्त० वरण ०४ - तिरिक्खाणु० गु०४ - अप्पसत्थ०तस०४- अथिरादिछ०-रिणमि० णीचागो ० - पंचंत० पिय० बं० । तं तु० । उज्जो ० सिया० । तं तु० । एवं असंपत्त० ।
१३६. वज्जरि० उक्क० द्विदिवं०
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पंचरणा०-णवदंसणा०-मिच्छ०- - सोलसक०
अर्धनाराच संहननका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् प्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट, एक समय न्यून से लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार अर्धनाराच संहननकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । वामन संस्थानकी मुख्यतासे सन्निकर्ष इसी प्रकार है । इतनी विशेषता है कि यह कीलक संहननका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् ग्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका
संख्यातवां भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है । असम्प्राप्तासृपाटिका संहनन और उद्योतका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार कीलक संहनन की अपेक्षा सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
१३५. श्रदारिक श्राङ्गोपाङ्गकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिध्यात्व, सोलह कषाय, नपुंसकवेद, अरति, शोक भय, जुगुप्सा, तिर्यञ्चगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, श्रदारिक शरीर, तेजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्डसंस्थान, श्रसम्प्राप्तासृपाटिका संहनन, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु चतुक, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, अस्थिर आदि छह, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तराय इनका नियमसे बन्धक होता है जो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट, एक समय न्यून से लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है । उद्योत प्रकृतिका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रवन्धक होता है | यदि बन्धक होता है तो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट, एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार असम्प्राप्तासृपाटिका संहननकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
१३६. वज्रर्षभ नाराच संहननकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव पाँच ज्ञाना
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