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उक्कस्सपरत्थाणबंधसण्णियासपरूवणा
वेउव्विय- तेजा ० क ० हुड० - वेडव्वि० अंगो०--वरण ० ४गिरयाणु० - अगु० - अप्पसत्य ०तस०४ - अथिरादिछ० - णिमि० णीचा० - पंचंत० लिय० वं० । तं तु० । गिरयायु० सिया० । यदि० णि० उकस्सा | आवाधा पुण भयपिज्जा । एवमेदाओ ऍकमेकस्स । तं तु० ।
१४६. सादावे० उक्क० द्विदिवं ० श्रघं । एवरि तिरिक्खर्गादि चदुजादिओरालि० चदुसंठा - ओरालि० अंगो०- पंच संघ ०-तिरिक्खाणु० - आदाउज्जो ० -- थावरसुहुम-अपज्जत्त-साधार० सिया० संखेज्जदिभागू० । एवं हस्स - रदीगं ।
१५०. इत्थवे० उक्क० द्विदिबं० श्रघं । रावरि तिरिक्खगदि-दोसंठा०-तिरिणसंघ० - तिरिक्खाणु० -उज्जो० सिया० संखेज्जदिभागू० । ओरालि० ओरालि ० अंगो० णि० वं० संखेज्जदिभागू० ।
१५१. पुरिस० उक्क ० द्विदिवं० ओघं ।
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एवरि तिरिक्खग० ओरालि० चदुकार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, वैक्रियिक श्राङ्गोपाङ्ग, वर्ण चतुष्क, नरक गत्यानुपूर्वी, गुरुलघु, प्रशस्त विहायोगति, त्रस चतुष्क, अस्थिर आदि छह, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तराय इनका नियमसे बन्धक होता है जो उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट एक समय न्यून से लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग न्यूनतक स्थितिका बन्धक होता है। नरकायुका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है । परन्तु वाधा भजनीय है । इसी प्रकार इन सब प्रकृतियोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए | किन्तु तब वह उत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है और अनुत्कृष्ट स्थितिका भी बन्धक होता है । यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्धक होता है तो नियमसे उत्कृष्टकी अपेक्षा अनुत्कृष्ट एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग न्यूनतक स्थितिका बन्धक होता है ।
१४९. सातावेदनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जोवका भङ्ग श्रोधके समान है । इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चगति, चार जाति, श्रदारिक शरीर, चार संस्थान, श्रदारिक श्राङ्गोपाङ्ग, पाँच संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण इनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग होन स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार हास्य और रतिको मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
१५०. स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवकी अपेक्षा सन्निकर्ष श्रोघके समान है । इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्चगति, दो संस्थान, तीन संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और उद्योत इनका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् श्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है । दारिक शरीर और श्रदारिक आङ्गोपाङ्ग इनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है ।
१५१. पुरुषवेदकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवकी अपेक्षा सन्निकर्ष श्रधके समान है। इतनी विशेषता है कि तिर्यञ्च गति, श्रदारिक शरीर, चार संस्थान, औदारिक
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