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महाबंधे ट्ठिदिबंधाहियारे बंधवोच्छेदो। तटो सागरो• अोसक्कि० हुंडसं०-असंवत्त० एदारो दुवे पगदीओ ऍक्कदो बंधवोच्छेदो । तदो सागरो० ओसक्कि० णवुस बंधवोच्छेदो । तदो सागरो० ओसक्कि० वामणसं०-खीलियसं० एदाओ दुवे पगदीओ ऍकदो बंधवोच्छेदो । तदो सागरो० ओसकि० खुज्जसं०-अद्धणारा० एदारो दुवे पगदीनो ऍक्कदो बंधवोच्छेदो । तदो सागरो० ओसक्कि० इत्थिवे. बंधवाच्छेदो । तदो सागरो० ओसक्कि० सादिय०णाराय. पदाओ दुवे पगदीओ ऍकदो बंधवोच्छेदो। तदो-सागरो० ओसक्कि णग्गोद-वज्जणारा० एदाओ दुवे पगदीओ ऍक्कदो बंधवोच्छेदो। तदो सागरो. ओसक्कि० मणुसगदि-ओरालि०-ओरालि०अंगो०-वज्जरिस०-मणुसाणु० एदाओ पंच पगदीओ एकदो बंधवोच्छेदो । तदो सागरो० ओसकि० असादा०-अरदि-सोगअथिर-असुभ-अजस० एदारो छ पगदीओ ऍक्कदो बंधवोच्छेदो । एत्तो पाए सेसाणि सव्वकम्माणि सव्वविसुद्धो बंधदि । एदेण अट्टपदेण समासभूदलक्खणेण साधणेण ।
२३५. जहणणसरिणयासो दुविधो-सत्थाणसएिणयासो चेव परंत्थाणसरिणयासो चेव । सत्थाणसएिणयासे पगदं। दुविधो णिद्देसो-अोघे० आदे।
ओघे० आभिणिबोधि. जहएणहिदिबंधमाणो चदुरणं णाणावर. णियमा बंधगो । णियमा जहएणा । एवमेकमेकस्स जहएणा ।
बन्धव्युच्छित्ति होती है। इससे सौ सागर पृथक्त्वका अपसरण होकर हुण्ड संस्थान और असम्प्राप्तामृपाटिका संहनन इन दो प्रकृतियोंकी एक साथ बन्धव्युच्छित्ति होती है। इससे सौ सागर पृथक्त्वका अपसरण होकर नपुंसकवेदकी बन्धव्युच्छित्ति होती है। इससे सौ सागर पृथक्त्वका अपसरण होकर वामन संस्थान और कीलक संहनन इन दो प्रक्रतियोंकी एक साथ बन्धव्यच्छित्ति होती है। इससे सौ सागर पृथक्त्वका अपसरण होकर कुञ्जक संस्थान और अर्धनाराच संहनन इन दो प्रकृतियोंकी एक साथ बन्धव्युच्छित्ति होती है। इससे सौ सागर पृथक्त्वका अपसरण होकर स्त्रीवेदको बन्धव्युच्छित्तिहोती है। इससे सौ सागर पृथक्त्वका अपसरण होकर स्वाति संस्थान और नाराच संहनन इन दो प्रकृतियों की एक साथ बन्धव्युच्छित्ति होती है। इससे सौ सागर पृथक्त्वका अपसरण होकर न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान और वज्रनाराच संहनन इन दो प्रकृतियोंकी एक साथ बन्धव्युच्छित्ति होती है। इससे सौ सागर पृथक्त्वका अपसरण होकर मनुष्यगति, औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, वज्रर्षभनाराच संहनन और मनुष्यगत्यानुपूर्वी इन पाँच प्रक्रतियोंकी एक साथ बन्धव्यच्छित्ति होती है। इससे सौ सागर पृथक्त्वका अपसरण होकर असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति इन छह प्रकृतियोंकी एक साथ बन्धव्युच्छित्ति होती है। इससे आगे प्रायः शेष सब कर्मीको सर्वविशुद्ध जीव बाँधता है। इस अर्थपद रूप समासभूत लक्षण साधनके अनुसार
२३५. जघन्य सन्निकर्ष दो प्रकारका है-स्वस्थान सन्निकर्ष और परस्थान सन्निकर्ष । स्वस्थान सन्निकर्षका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है----श्रोध और आदेश ।
ओघसे आभिनिबोधिक शानावरणकी जघन्य स्थितिका वन्धक जीव चार ज्ञानावरणका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार परस्पर जघन्य स्थितिके बन्धक होते है।
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