Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
विहत्तीए णिक्खेवो विभक्तिरसमानं भवति प्रदेशापेक्षया न सत्त्वादिना; सर्वेषां तेन सादृश्योपलम्भात् ।
* तदुभएण अवत्तव्वं ।
१०. विहत्ति त्ति वा अविहत्ति ति वा समाणासमाणदव्वावेक्खाए तमप्पियदव्वं विहत्ति अविहत्ति त्ति वा अवत्तव्वं; दोहि धम्मेहि अक्कमेण जुत्तस्स दव्वस्स पहाण- . भावेण वोत्तुमसकिजमाणत्तादो। ___ * खेत्तविहत्ती तुल्लपदेसोगाढं तुल्लपदेसोगाढस्स अविहत्ती।
६११. खेत्तविहत्ती त्ति एत्थ 'वुच्चदे' इति एदीए किरियाए सह संबंधो काययोः अण्णहा अत्थणिण्णयाभावादो। किं खेत्तं ? आगासं;
"खेत्तं खलु आगासं तव्विवरीयं च हवदि णोखेत्तं ॥१॥” इति वयणादो।
१२. तुल्याः प्रदेशाः यस्य तत्तुल्यप्रदेशं । कः प्रदेशः ? निर्भाग आकाशावयवः । तुल्यप्रदेशं च तत् अवगाढं च तुल्यप्रदेशावगाढं । तमण्णस्स तुल्लपदेसोविवक्षित द्रव्य उस विमात्र प्रदेशवाले द्रव्य के साथ विभक्ति अर्थात् असमान है। यहां यह असमानता प्रदेशोंकी अपेक्षा जानना चाहिये, सत्त्वादिककी अपेक्षा नहीं, क्योंकि सत्त्वादिककी अपेक्षा सब द्रव्योंमें समानता पाई जाती है।
___ * विभक्ति द्रव्य और अविभक्ति द्रव्य इन दोनोंकी अपेक्षा अर्पित द्रव्य अवक्तव्य है।
१०. विभक्तिरूप और अविभक्तिरूप अर्थात् समान और असमान द्रव्यकी अपेक्षा वह अर्पित द्रव्य युगपत् विभक्ति और अविभक्तिकी विवक्षा होनेके कारण अवक्तव्य है, क्योंकि दोनों धर्मोंसे एक साथ संयुक्त हुए द्रव्यका प्रधान रूपसे कथन नहीं किया जा सकता है।
* अब क्षेत्रविभक्ति निक्षेपका कथन करते हैं। तुन्य प्रदेशवाला अवगाढ दसरे तुल्य प्रदेशवाले अवगाढ़के साथ अविभक्ति है।
११. सूत्रमें 'खेत्तविहत्ती' इस पदका 'वुच्चदे' इस क्रियाके साथ सम्बन्ध कर लेना चाहिये, क्योंकि उसके बिना अर्थका निर्णय नहीं हो सकता है।
शंका-क्षेत्र किसे कहते हैं ?
समाधान-आकाशको क्षेत्र कहते हैं, क्योंकि "क्षेत्र नियमसे आकाश है और आकाशसे विपरीत नो क्षेत्र है ॥ १ ॥” ऐसा आगम वचन है ।
६ १२. जिसके प्रदेश समान होते हैं वह तुल्य प्रदेशवाला कहलाता है। शंका-प्रदेश किसे कहते हैं ?
समाधान-जिसका दूसरा हिस्सा नहीं हो सकता, ऐसे आकाशके अवयवको प्रदेश कहते हैं।
(१) ध० खे० पृ०७।
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