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उपयोगद्वारनिरूपणम् ९५
रोपयुक्ताः-साकारोपयोगवन्तो भवन्ति अथवा-अनाकारोपयुक्ताः-अनाकारोपयोगवन्तो भवन्ति, उपयुज्यते कर्मफलभोगाय आत्मा येन स उपयोगः स च द्विविधः साकारोऽनाकारश्च, तत्राकारः प्रतिवस्तु प्रतिनियतो ग्रहणपरिणामः 'आगारो उ विसेसो' (आकारस्तु विशेषः) इति वचनात् , सह आकारो यस्य येन वा स साकारः-ज्ञानपश्चकमज्ञानत्रिकम् , उक्ताकाररहितोऽनाकारः, स चक्षुर्दर्शनादिको दर्शनचतुष्टयात्मकः, तदुक्तम् -
ज्ञानाज्ञाने पञ्च त्रिविकल्पे सोऽष्टधा तु साकारः ।
चक्षुरचक्षुरवधिके बल दृगविषयस्त्वनाकार इति ॥ तदेतयोरुपयोगयोमध्ये सूक्ष्मपृथिवीकायिकानां क उपयोगो भवतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ? 'सागारोवउत्ता वि अनागारोवउत्ता वि' सूक्ष्म पृथिवीकायिकजीवाः साकारोपयुक्ताः-साकारोपयोगवन्तोऽपि भवन्ति, तथाऽनाकारोपयुक्ताःयोग वाले होते है ? आत्मा का चैतन्यानुविधायी जो परिणाम है उसका नाम उपयोग है। यह उपयोग साकारोपयोग और अनाकारोपयोग के भेद से दो प्रकार का होता है । प्रतिनियत वस्तु का जो ग्रहण करने रूप व्यापार है वह साकार उपयोग है क्योंकि "आगारो उ विसेसो" आकार ही विशेष है । ऐसा सिद्धान्त का वचन है । ज्ञानोपयोग आठ प्रकार का कहा गया है-- मतिज्ञान आदि पांच ज्ञान और तीन अज्ञान, कहा भी है - "ज्ञानाज्ञाने पञ्चत्रिविकल्पे, इत्यादि । दर्शनोपयोग चार प्रकार का है। चक्षुर्दर्शन अचक्षुर्दर्शन अवधिदर्शन और केवलदर्शन यही अभिप्राय -" चक्षुरचक्षुरविधि" इस श्लोकार्ध का है । इस प्रकार जब उपयोग दो प्रकार का होता है तो फिर इनके बीच में सूक्ष्मपृथिवीकायिकजीवोके कौनसा उपयोग होता है ऐसा यह प्रश्न है। इसके उत्तर में प्रभु कहते है “गोयमा" ! सागारोवउत्ता वि अनागारोवउत्ता वि" हे પગવાળા હોય છે ? આત્માનું ચૈતન્યાનુવિધાયી જે પરિણામ છે, તેનું નામ ઉપગ छ. ते उपयोगना नाय प्रभाए मे १२ ५९छे-(१) सा१२ रुपया! मन (२) मना॥२ઉપયોગ. પ્રતિનિયત વસ્તુનું ગ્રહણ કરવા રૂપ જે વ્યાપાર (પ્રવૃત્તિ) છે, તેનું નામ સાકારउपयोग छे, ४।२९ "आगारो उ विसे सो" "मा२ ४ विशेष छे" मे सिद्धान्तनु ४थन છે. જ્ઞાનપગ આઠ પ્રકારનો કહ્યો છે—મતિજ્ઞાન આદિ પાંચ જ્ઞાન રૂપ પાંચ પ્રકાર અને त्रय भज्ञान ३५ ३ ४२ ४युं ५ छ ?--"ज्ञानाशाने पञ्चत्रिविकल्पे" त्यहि
शनोपयोग यार प्रारना ह्यो छ--(१) यक्षशन, (२) अयक्षुशन (3) अवधिદર્શન અને (૪) કેવલદર્શન એજ વાત નીચેના કેલેકાર્ધમાં પ્રકટ કરવામાં આવી છે-- "चक्षुरचक्षुरवधि" गौतम स्वामीना प्रश्ननु तात्पर्य से छेमे प्रा२न 6पयोगमाथा સૂક્ષમપૃથ્વીકાયિક જીમાં કયા ઉપગને સદ્ભાવ હોય છે ?
महावीर प्रभु ना सत्तर मापता ४ छ -“गोयमा!" ७ गौतम ! "सागारोवउत्ता वि अनागारोवउत्ता वि" सूक्ष्भपृथ्वीयि सा१२७५योगका ५९] डाय छ भने