Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 608
________________ ...... .. . .. .. ..... ..... ५८६ जीवाभिगमसूत्रे हिया' त्रीन्द्रियतिर्यगयोनिकनपुसका विशेषाधिका भवन्तीति त्रीन्द्रियनपुसकापेक्षयाऽपि-'इंदियतिरिक्खजोणियणपुसगा विससाहिया' हीन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसका विशेपाधिका भवन्तीति । द्वीन्द्रियनपुंसकापेक्षयापि 'तेउक्काइयएगिदियतिरिक्खोणियणपुंसगा असंखज्जगुणा' तेजस्कायिकैकेन्द्रियतिर्यगयोनिकनपुंसका असख्यातगुणा अधिका भवन्तीति । तेजस्कायिकापेक्षयापि'पुढवीकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा विसेसाहिया' पृथिवीकायिकैकेन्द्रियतिर्यन्योनिकनपुंसकाविशेषाधिका भवन्तीति पृथिवीकायिकैकेन्द्रियनपुंसकापेक्षयापि 'आउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा विसेसाहिया' अप्कायिकैकेन्द्रियतिर्यगयोनिकनपुसका विशेषाधिका भवन्तीति अप्कायिकनपुसकापेक्षयाऽपि 'बाउक्काइयएगिदियतिरिवखाणियणपुंसगा चिसेसाहिया' वायुकायिकैकेन्द्रियतिर्यगूयोनिकनपुंसका विशेषाधिका भवन्तीति वायुकायिकनपुंसकापेक्षयाऽपि 'वणस्सइकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा अणतगुणा' वनस्पतिकायिकैकेन्द्रियतिर्यगयोनिकनपुंसका अनन्तगुणा अधिका भवन्तीति पञ्चममन्पबहुत्वम् । समाप्तं नपुंसकानामल्पवहुत्वप्रकरणम् ॥सू० १७॥ की अपेक्षा "तेइंदिय तिरिक्खजोणियणपुंसगा विसेसाहिया" तेइन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुसक विशेषाधिक हैं। तेइन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुंसकों की अपेक्षा 'इंदियतिरिक्खजोणियणपुसगा विसेसाहिया” दोइन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसक विशेषाधिक है । द्वीन्द्रिय निर्यग्योनिक नपुंसको की अपेक्षा "तेउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा असंखेज्जगुणा" तैजसकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसक असख्यातगुणे अधिक है । तेजस्कायिक नपुंसकों की अपेक्षा "पुढवीकाढयएगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा विसेसाहिया" पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुसक विशेषाधिक है । पृथिवीकायिक नपुंसको की अपेक्षा 'आउकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा विसेसाहिया" अप्कायिक एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसक विशेषा. धिक है । अप्कायिक नपुंसकों की अपेक्षा 'वाउकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियणपुसगा विसेसाहिया" वायुकायिक एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसक विशंपाधिक है । वायुकायिक नपुंसकों की अपेक्षा 'वणस्सइकाइय एगिदियतिरिक्खजोणियणपुसगा अणंतणा" वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुसक अनन्तगुणे अधिक है ? इस प्रकार से पांचवां नैरयिक तिर्यञ्च मनुष्य सम्बन्धी अल्प बहुत्व है । नपुसकों का अल्प बहुत्व-प्रकरण समाप्त हुआ । सूत्र १७॥ इण एगिदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगा असखेज्जगुणा" सय मेद्रियाणा तिय ध्यान नपुंस। असयात पधारे छे. तेरेय नपुंस। ४२di 'पुढवीकाइयपगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगा विसेसाहिया" पृथ्वी थि: गेन्द्रिय तिय यानि विशेषाधि४ छ पृथ्वजयि नधुस ४२ता ‘आउकाइयतिरिक्खजोणियणपुंसगा विसेसाहिया" अ५४॥य मे दियवा तययानि नपुंस विशेषाधि छे. अयि नसो ४२ता 'वाउक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगा विसेसाहिया" वायुधि४ मे द्रियाण तिर्थयानिनस विशेषाधि छ वायुयि४ नस। ४२di “वणस्सइकाइयागिदियतिरिक्खजोणियणपुसगा अणतगुणा" वनस्पति

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