Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 647
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र २ सू० २२ विशेषतस्तिर्यगादीनां समिश्र नवममल्पवहुत्वम् ६२५ गौतम ! 'अंतरदीवगअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ मणुस्सपुरिसा य' अन्तरद्वीपकाकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियो मनुष्यपुरुषाश्च 'एए णं दो वि तुल्ला सव्वत्थोवा' एते खल स्त्रिया पुरुषाश्च द्वयेऽपि तुल्याः सर्वस्तोकाः, हे गौतम ! सर्वस्तोकाः, सर्वेऽभ्योऽल्पाः अन्तरद्दीपकमनुष्यस्त्रियो मनुष्यपुरुषाश्च भवन्ति तथा एते द्वयेऽपि स्वस्थाने परस्परं तुल्याश्च युगलधर्मोपेतत्वादिति । अन्तरद्वीपकमनुष्यस्त्रीपुरुषापेक्षया 'देवकुरूत्तरकुरु अकम्मभूमिग मणुस्सित्थीओ मणुस्सपुरिसा य' देवकुरूत्तरकुर्वकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियो मनुष्यपुरुषाश्च 'संखेज्जगुणा' सख्येयगुणाधिका भवन्ति, तथा-'एएणं दो वि तुल्ला' स्वस्थाने एते खल द्वयेऽपि परस्पर तुल्या भवन्तीति । 'एवं हरिवासरम्मगवास.' एवम्-पूर्ववदेव देवकुर्वादिमनुष्यस्त्रीपुरुषापेक्षया हरिवर्षरम्यकवर्षाकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियो मनुष्यपुरुषाश्च संख्येयगुणाधिका भवन्ति । तथा इमे परस्परं तुल्याश्च भवन्तीति । 'एवं हेमवयहेरण्णवय अकम्मभूमिग मणुस्सित्थीओ मणुस्सपुरिसा य संखेज्जगुणा' हरिवर्षरम्यकवर्षस्त्रीपुरुषापेक्षया हैमवतहैरण्यवताकर्मभूमिकमनुष्यस्त्रियो मनुष्यपुरुषाश्च संख्येयगुणाधिका भवन्ति तथा, स्वस्थाने हैमवतहैअंतरदीवगअकम्मभूमिगणुसित्थीओ मणुस्सपुरिसा य" हे गौतम ! अन्तरद्दीपक मनुष्य स्त्रियां और अन्तर द्वीपक मनुष्य पुरुष “एए णं दो वि तुल्ला सव्वत्थोवा" सबसे कम है और ये दोनों स्वस्थान में बराबर हैं। क्यो कि इनका युगलिक धर्म है । अन्तर भूमिक मनुष्य स्त्री और पुरुषो की अपेक्षा "देवकुरूत्तरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ मणुस्सपुरिसा य संखेज्जगुणा एतेणं दो वि तुल्ला" देवकुरु और उत्तर कुरु रूप अकर्म भूमि की मनुष्य स्त्रियां और मनुष्य पुरुष संख्यात गुणे अधिक है । तथा ये दोनों परस्पर में तुल्य हैं। "एवं हरिवासरम्मगवास०" इसी प्रकार देवकुरु उत्तरकुरु मनुष्य स्त्री और मनुष्य पुरुषो की अपेक्षा हरिवर्ष और रम्यक वर्ष रूप अकर्मभूमि की मनुष्य स्त्रियां और मनुष्य पुरुष संख्यात गुणे अधिक है और स्वस्थान में ये आपस में बराबर है । "एवं हेमवयहैरण्णवय०" इसी प्रकार हरिवर्ष और रम्यक वर्ष की मनुष्य स्त्रियो एवं पुरुषो की अपेक्षा हैमवत और हैरण्यवत रूप अकर्मभूमि मिगमणुस्सित्थीओ मणुस्तपुरिसाय" गौतम | मतदीपनी मनुष्यस्त्रियो भने मातर द्वीपना मनुष्यपुष। “एए णं दो वि तुल्ला सव्वत्थोवा” से भन्ने स्वस्थानमा मस२ छ કેમકે--તેઓ યુગલિક ધર્મવાળા છે અને અંતરદ્વીપની મનુષ્ય સ્ત્રિ અને પુરૂષ કરતા સૌથી माछा छ "देवकुरूत्तरकुरु अकम्मभूमिगमणुस्सित्थीओ मणुस्सपुरिसाय संखेज्जगुणा एते णं दो वि तुल्ला" ३ मन उत्तर३३३५ ममभूमिनी मनुष्यस्त्रिया मन मनुष्य १३षा से ज्यात पधारे ४ह्या छ भने ५२८५२ से गन्ने स२५॥ छे. "एवं हरिवासरम्मगवास.” से प्रभारी वा३ भने उत्तर १३ मनुष्यस्त्रियो भने मनुष्य ५३॥ ४२तां હરિવર્ષ અને રમ્યકવર્ષ રૂપ અકર્મભૂમિની મનુષ્ય સ્ત્રિ અને મનુષ્ય પુરૂષે સંખ્યાત ગણા धारे छ. मने स्वस्थानमा तया ५२२५२मां तुल्य छे. “एवं हेमवयहेरण्णवय०" मेर પ્રમાણે હરિવર્ષ અને રમ્યકવર્ષની મનુષ્યસ્ત્રિ અને મનુષ્ય પુરૂ કરતાં હૈમવત અને

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