Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
जीवाभगमसू
६००
तिर्यग्योनिकनपुसका विशेषाधिकाः, तेजस्कायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसका असंख्येय गुणाः, पृथिवीकायिकैकेन्द्रियतिर्यगृयोनिकनपुंसका विशेषाधिकाः, अप्कायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसका विशेषाधिकाः, वायुकायिकैकेन्द्रितर्यग्योनिकनपुंसका विशेषाधिकाः, वनस्पतिकायिकैकेन्द्रियतिर्यगयोनिकनपुंसका अनन्तगुणाः ॥१० २०॥
अथ विशेषतस्तिर्यगादिसम्बन्धिषष्ठमल्पबहुत्वमाह-'एयासिए णं अंते' इत्यादि । टीका-'एयासि णं भंते' एतासां खलु भदन्त ! 'तिरिक्खजोणित्थीणं' तिर्यग् योनिकस्त्रीणाम् 'जलयरीणं' जलचरीणाम्-जलचरस्त्रीणाम् 'थलयरीणं' स्थलचरीणां स्थलचरस्त्रीणाम् 'खहयरीणं' खेचरीणा खेचरस्त्रीणाम् 'तिरिक्खजोणियपुरिसाणं' तिर्यग्योनिकपुरुषाणाम् 'जलयराणं' जलचराणां जलचरपुरुषाणाम् 'थलयराणं' स्थलचरपुरुषाणाम् 'खहयराणं' खेचराणा खेचरपुरुषाणाम् 'तिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' तिर्यगूयोनिकनपुसकानाम् 'एगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' एकेन्द्रियतिर्यगयोनिकनपुंसकानाम् 'पुढवीकाइयएगिदियतिरिक्ख जोणिसगाणं' पृथिवीकायिकैकेन्द्रियतियगयोनिकनपुंसकानाम् । तथा-'जाव वणस्सझ्यएगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' यावदनस्पतिकायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुसकानाम् । अत्र याव
-
___ अब विशेष से तिर्यंचादि सम्बन्धी छठा अल्पबहुत्व कहते है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-“एयासि णं भंते ? तिरिक्खजोणित्थीण" हे भदन्त ! इन तिर्यग्योनिकस्त्रियों के "जलयरीणं" जलचरस्त्रियोंके, “थलयरीणं" स्थलचरस्त्रियोके, 'खहयरीणं" खेचर स्त्रियों के "तिरिक्खजोणियपुरिसाणं' तिर्यग्योनिक पुरुषो के "जलयराणं जलचर पुरुषो के 'थलयराणं' स्थलचर पुरुषो के 'खहयराणं' खेचर पुरुषों के तिरिक्खजोणियणपुंसगाणं तिग्योनिकनपुंसको के "एगिदियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं एकेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसको के, "पुढवीकाइ एगिदिय तिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक नपुंसकों के तथा--'जावव णस्सइकाइयतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' यावत् अप्कायिक, तेजस्कायिक वायुकायिक एकेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसको के-वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकनपुं
હવે વિશેષ પ્રકારથી તિર્યંચ વિગેરેના સંબંધમાં છઠ્ઠી અલ્પ બહુપણાનું કથન કરવામાં माव छ.-माम गौतम स्वामी प्रसुने पूछ्यु छ है- “एयासिं णं भंते ! तिरिक्ख जोणित्थीण" हे भवन् मानियन स्त्रियामा “जलयरीणं' सय२ स्त्रियामा "थलयरीण" २थसयर स्त्रिायोमा “खहयरीण' मेयर स्त्रियामा "तिरिक्ख जोणिय पुरिसाण" तिर्यज्ये। नि: ५३यामा “जलयराणं" are Y३षीमाथलयराण" २०१५२ ५३पामा “खहयराण' य२ ५३षोभा 'तिरिक्खजोणियणपुंसगाण" तिन न सोमा “एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाण" मेद्रियवाण तिर्यस्यनि नपुसीमा तथा-- -"जाव वणस्तइकाइय तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं" यावत् १५५, ४२यि, वायुयड, मेद्रिय वातिय योनि नसभा--वनस्पतिय४ मेद्रिय वाण तिय योनि नयुसीमा-'बेइंदिय

Page Navigation
1 ... 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690