Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 606
________________ ५८४ जीवाभिगमसू पेक्षया 'देवकुरु उत्तरकुरु अकम्मभूमिगमणुम्सण पुंसगा दोविल्लासंखेज्जगुणा' देवकुरुत्तरकुर्वकर्मभूमिकमनुष्य नपुंसकाः सस्येयगुणा अधिका भवन्ति स्वस्थाने तु येऽपि एते परस्परं तुल्या भवन्ति । 'जावपुव्वविदेह अवर विदेहकम्म भूमिगमणुम्सण पुंसगादोवि तुल्यासंखेज्जगुणा' यावत् पूर्वविदेहापरविदेहकर्मभृमिकमनुष्य नपुसका द्वयेऽपि तुल्या संख्येयगुणाः, अभाव' देव कुरूत्तर कुर्व कर्मभूमिकमनुप्यनपुंसकापेक्षया हरिवर्परम्यकवर्षा कर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकाः सख्येयगुणाधिका भवन्ति तथा स्वस्थाने येऽपि परस्परं तुल्या' एतदपेक्षया हैमवतहरण्यवता कर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकाः सख्येयगुणाधिका स्वस्थाने हयेऽपि परस्परं तुल्या भवन्ति एतदपेक्षया भरतैरवतकर्मभूमिकमनुप्यनपुसकाः सत्येयगुणाधिका भवन्ति, स्वस्थाने येऽपि परस्परं तुल्या भवन्ति, एतदपेक्षयाऽपि पूर्वविदेहापर विदेहकर्मभूमिकमनुष्य नपुंसका सख्येयगुणाधिका, स्वस्थाने परम्पर तुल्याश्च भवन्तीति । पूर्वविदेहापरविदेहाऽकर्मभूमिकमनुप्यनपुसकापेक्षया 'रणापभापुढवीणेरड “देव कुरूत्तरकुरू अकर्मभूमिगमणुस्स णपुंसगा दोवि तुल्ला संखेज्ज गुणा " देवकुल और उत्तर के जो मनुष्य नपुंसक है वे सख्यात गुणितो अधिक है परन्तु ये दोनो स्वस्थान मं तुल्य है । 44 'जाव पुन्वविदेह अवरविदेह कम्म भूमिगमणुस्स णपुंसगा दावि संखेज्ज गुणा " ' यावत् ' यावत्पद से देवकुरू और उत्तर कुरूके मनुष्यनपुंसको की अपेक्षा हरिवर्ष और रम्यकवर्ष के जो मनुष्यनपुंसक है वे सख्यात गुणित है । पर ये दोनो परस्पर में तुल्य है । इनकी अपेक्षा हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र के जो मनुष्यनपुसक हैं वे सम्यात गुणितो हैं - पर ये दोनों आपस में तुल्य है । इनकी अपेक्षा भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र के जो मनुष्यनपुंसक हैं वे संख्यात गुणित अधिक है - और स्वस्थान में तुल्य है । तथा इनकी अपेक्षा जो पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह के कर्म भूमिक मनुष्यनपुंसक है वे सख्यात गणित है । पर ये भी स्वस्थान में तुल्य 1 है सगा असंखेज्जगुणा" अंतर द्वीपना भनुष्य नघुसी छे, तेथे असं ज्यात गया वधारे छे. આ ગર્ભજ મનુષ્યના ઉચ્ચાર, પ્રસવણુ–મસૂત્ર વિગેરે શરીરના મળથી ઉત્પન્ન થવાના કારણે સ`મૂ॰િમ મનુષ્ય અસંખ્યાતગણા વધારે હાય છે, કેમકે- -त्या मेटला मंभूर्च्छित होय छे. अंतरद्वीप मनुष्य नयु सो अस्तां 'देवकुरूत्तर कुरु अकर्मभूमिग मगुस्सणंसगा दोवि तुल्ला संखेज्जगुणा" हेव३ अने उत्तर ३३ माने मनुष्य नपुंसक छे, तेथे संख्याता वधारे छे परंतु या मन्ने स्वस्थानमा तुझ्य छे. "जाव पुव्त्रविदेह अवरविदेह कम्मभूमिग मस्त णपुंसगा संखेज्जगुणा" अडिया यावत्यध्थी हेवडु३ याने उत्तरकुना મનુષ્ય નપુસકાના અપેક્ષાથી રિવષ અને રમ્યકવના જે મનુષ્ય નપુ સકે છે, તેએ સખ્યાત ગણા વધારે છે. પરંતુ આ બન્ને પરસ્પરમા સરખા છે તેના કરતાં ભરતક્ષેત્ર અને એરવત ક્ષેત્રના જે મનુષ્ય નપુસકે છે, તેએ સ ખ્યાતગણા વધારે છે અને સ્વસ્થનમાં તુલ્ય છે. તથા તેના કરતાં પૂર્વ વિદેહ અને પશ્ચિમ વિદેહના કર્મ ભૂમિજ જે મનુષ્ય નપુ સકે છે, તેઓ સખ્યાતગણુા છે. પરંતુ તેઓ પણ સ્વસ્થાનમાં તુલ્ય છે કર્મ ભૂમિ જ પૂર્વવિદેહ અને

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