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प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १
श्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियजीवनिरूपणम् २०१ त्यतिरिक्तं सर्व तथैव-द्वीन्द्रियप्रकरणवदेव ज्ञातव्यमिति । 'दुगइया दुआगइया' त्रीन्द्रियजीवाः द्विगतिका द्वयागतिका भवन्ति तिर्यड्मनुष्यगतौ गच्छन्ति तथा तिर्यड्मनुष्येभ्य एव आगच्छन्तीति 'परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता' प्रत्येकशरीरिणोऽसंख्याताः प्रज्ञप्ताः । त्रोन्द्रियप्रकरणमुपसंहरनाह-'से तं तेइंदिया' ते एते त्रीन्द्रिया जीवा निरूपिताः, इति ।।
निरूपितास्त्रीन्द्रियजीवा', सम्प्रति चतुरिन्द्रियजीवान् निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह-'से कि तं' इत्यादि, 'से कि तं चउरिदिया' अथ के ते चतुरिन्द्रियजीवा इति प्रश्नः, उत्तरयति'चउरिदिया अणेगविहा पन्नत्ता' चतुरिन्द्रियजीवा अनेकविधाः-अनेकप्रकारकाः प्रज्ञप्ता:कथिता इति । अनेकविधत्वमेव दर्शयति-'तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-अंधिया पुत्तिया
स्थिति के अतिरिक्त और जो शरीर, संहनन आदि द्वार हैं वे सब द्वीन्द्रिय के प्रकरण के जैसे ही हैं । ये तेइन्द्रिय जीव "दुगइया, दुआगइया" द्विगतिक और द्यागतिक होते है । क्योकि ये इस पर्याय से जब उद्बत होते हैं तो तिर्यञ्च गति या मनुष्य गति इन दो ही गतियो में जाते है । तथा इनमें तिर्यञ्च गति और मनुष्य गति से आये हुए जीव ही उत्पन्न होते हैं इसलिये ये दूधागतिक होते है । "परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता" ये प्रत्येक शरीरी असंख्यात होते हैं । इस प्रकार तेइन्द्रियजीवो का कथन करके अब सूत्रकार इस प्रकरण का उपसंहार करते हैं--"से तं तेइंदिया" इस प्रकार से तेइन्द्रियजीवों का यह निरूपण किया है।
अव चौइन्द्रियजीवों का निरूपण किया जाता है-"से किं तं चउरिदिया" हे भदन्त ! चौइन्द्रियजीवों का क्या लक्षण है और कितने इनके भेद हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-गौतम ! "चउरिदिया अणेगविहा पण्णत्ता" चौइन्द्रियजीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं-"तं जहा" जैसे-“अंधिया पुत्तिया, जाव गोमयकीडा" अन्धिका, पुत्रिका यावत्, गोमજઘન્યથી એક અંતર્મુહૂર્તની હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી ૪૯ ઓગણ પચાસ રાતદિવસની डाय छ 'सेसं तहेच" माना द्रिय. मने स्थितिवारना ४थन सिवाय माहीना શરીર સંહનન. વિગેરે દ્વારે છે. તે બધા બે ઈંદ્રિયવાળા જીના કથન પ્રમાણે જ છે. मा तेन्द्रिय "दुगइया दुआगइया" द्विगति मन दयाति डाय छे. भ-त આ પયીયમાંથી જ્યારે નીકળે છે, તે તિર્યંચગતિ અને મનુષ્યગતિ આ બેજ ગતિમાંથી આવેલ જીવ જ ઉત્પન્ન થાય છે તેથી તેમને પ્રયાગતિક કહેલા છે.
"परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता" मा प्रत्ये: शशश मसभ्यात डाय छ ।प्रमाणे - छद्रिय वा ४थन श२ वे सूत्रधार माने। यस हा२ ४२ छे. "सेत्तं ते इंदिया" આ રીતે તે ઇન્દ્રિય જીનું આ નિરૂપણ કર્યું છે - હવે ચૌઈદ્રિય જીવોનું નિરૂપણ કરવામાં આવે છે આ સંબંધમાં ગૌતમસ્વામી પ્રભુને पूछे छे४-"से किं तं चउरिदिया। भगवन् यो द्रिय वानु शु क्ष छ १ मन तेना सदा सेहो ४सा छ १ मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभु ४ छ -8 गौतम । "चउ. रिदिया अणेगविहा पपणत्ता" यौन्द्रिय मने प्रारना ४ा छ.-"तं जहा" ते
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