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जीघाभिगमसूत्रे २६४ कियभेदाश्चेति प्रश्नः, उत्तरयति-'भुजपरिसप्पसंमुच्छिमथलयरा अणेगविहा पन्नत्ता' भुनपरिसर्पसंमूर्छिमस्थलचरा भनेकविधाः-अनेकप्रकरकाः प्रज्ञप्ता:-कथिताः 'तं जहा' तद्यथा-'गोहा नउला जाव' गोधा नकुला यावत् । अत्र यावत्पदेन प्रज्ञापनाया ये मेदाः कथिताः 'सरडा' इत्यादय स्ते एवेहापि वक्तव्याः । अत्र गोधाख्यस्थलचरो जन्तुविशेषः (गोह) इति प्रसिद्धः नकुला. प्रसिद्धाः, अन्ये सरटादयो लोकाद् देशविशेषाद्वा ज्ञातव्याः । 'जे यावन्ने तहप्पगारा' ये चान्ये तथाप्रकाराः येऽपि गोधा नकुलादिभिन्नाः तत्सदृशाः इनका क्या लक्षण है ? उत्तर में प्रभु कहते है-"भुजपरिसप्पसमुच्छिमथलयरा अणेगविहा पण्णत्ता" हे गौतम । भुजपरिसर्पसंमूर्छिमस्थलचर जीव अनेक प्रकार के कहे गये है, "तं जहा" जैसे "गोहा नउला जाव" गोधा, नकुल आदि यहां यावस्पद से प्रज्ञापना में जो भेद कहे गये है वे ही सब यहां वक्तव्य हुए हैं । प्रज्ञापना के पाठ का भाव इस प्रकार से हैं-गोधा-गोह यह स्थलचर जन्तु विशेष हैं नकुल-नेवला यह प्रसिद्ध स्थलचर विशेष जीव है सर्प का और इसका आपस में जन्मजात
वैर होता है यह सर्प को देखते ही उसे पकड़ लेता है और उसके टुकडे टुकडे कर देता है। __ सरट को हिन्दी में गिरधौला कहते हैं यह बैठे बैठे अपने मस्तक को हिलाया डुलाया करता
है । यह पेड़ आदि पर चिपका रहता है-"घरोलिया" यह देशविशेष का प्रसिद्ध शब्द है, गुजरात में इसे खिसकोली कहते हैं और हिन्दी में इसे गिलहरी कहते है । "विपंभर" को हिन्दी में "विसभरा" कहते है । यह मकान में दीवाल पर चिपका रहता है । रात्रि में प्रकाश के पास आये हुए पतंगादिको का यह भक्षण करता हैं इनके अतिरिक्त और जो शब्द વિગેરે ભુજપરિસર્પ સંમૂરિછમ સ્થલચર જીવ કેટલા પ્રકારના કહેલા છે? તથા તેના सक्षछे १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -“भुजपरिसप्पसंसुच्छिमथलयरा अणेगविहा पण्णत्ता" गौतम! सुपरिस५ सभूरिछ भस्थरयर मन प्रसन! - साछे. "तं जहा" ते मा प्रभारी छ. "गोहा नउला जाव" घा, नाजिया विगैरे. मखियां યાવસ્પદથી પ્રજ્ઞાપના સૂત્રમાં જે ભેદે કહેલા છે, તે તમામ ભેદ સમજી લેવાં પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના પાઠને ભાવાર્થ આ પ્રમાણે છે–ગોધા-ઘો આ સ્થલચર જતવિશેષ છે. નકુલ-નળીયા આ પણ પ્રસિદ્ધ સ્થલચર વિશેષજીવ છે. સપને અને આ નળીયાને જન્મથીજ વેર હોય છે. સર્પને દેખીનેજ આ નાળીયે, તેને પકડી લે છે. અને સર્ષના ટુકડે ટુકડા કરી નાખે છે સરટ-કાચંડે, આ કાંચડે બેઠા બેઠા માથું હલાવે છે, અને તે ઝાડ विगेरे ५२ यांटी २ छ. घरोलिया' मा देश विशेषमा प्रसिद्ध श६ छ, शुशतमा भिसदी छे, अने हसीम तने तहरी' ४ छ "विषभर" २ हिदीमा "विषभरा र छ भने ते भाननी हवासी-सीताभ याटिरहेछ भने शुभशतामा 'धरासी' કહે છે. તે રાત્રે પ્રકાશથી આવેલ પતંગો વિગેરેને ખાઈ જાય છે. આ સિવાયના બીજા જે