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जीवाभिगमसूत्रे जन्म प्रतीत्य-जन्माश्रित्य जहन्नेणं अन्तो मुहत्तं जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् एतावत्कालेऽपि असकृदुत्पादात् 'उक्कोसेणं अन्तो मुहुत्तपुहुत्तं' उत्कपेणान्तर्मुहूर्तपृथक्त्वम् द्वचन्तर्मुहूर्तादारभ्य नवान्तमुहूर्तपर्यन्तम् , तदनन्तरं तत्र तथारूपेण उत्पादा भावादिति । 'साहरणं पडुच्च' सहरणं प्रतीत्य 'जहन्नेणं अन्तो मुहुत्तं' जघन्येनान्तर्मुहूर्त्तम् ततःपरं मरणादि भावात् । 'उक्कोसेणं देसूणा पुब्बकोडी' उत्कषण देशोना पूर्वकोटिरिति ‘एवं सव्वेसिं जाव अन्तरदीवगाणं' एवं सामान्यतोऽकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकवदेव हैमवतहरण्यवतह रिवर्परम्यकवर्षदेवकुरुत्तरकुर्वन्तर द्वीपकउक्कोसेणं अंतोमुहुत्त पुहुत्तं" हे गौतम ! जन्म की अपेक्षा लेकर इनकी कायस्थिति का काल मान कम से कम एक अन्तर्मुहर्त का है और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त पृथक्त्व दो अन्तर्मुहर्त से लेकर नौ अन्तर्मुहूर्त तक का है । जघन्य से जो यहाँ कालमान कहा गया है वह "इतने भी काल में वह बार वार उत्पन्न हो जाता है' इस अपेक्षा से कहा गया है । तथाउत्कृष्ट काल जो अन्तर्मुहूर्त पृथक्त्व रूप कहा गया है वह "इतने काल के बाद फिर उस रूप से वह वहाँ उत्पन्न नहीं होता है" इस बात को लेकर कहा गया है। "साहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पूच्चकोडी" सहरण की अपेक्षा लेकर, इनकी कायस्थिति का काल जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त का है क्योकि उसके बाद उसकी मृत्यु आदि हो जाता है और उत्कृष्ट से देशोन कुछ कम पूर्व कोटि का है । "एवं सव्वेसिं जाव अन्तर दीवगाणं" सामान्य अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की जैसी कायस्थिति है वैसी ही सबो की है अर्थात् हैमवत मनुष्य नपुंसक की, हैरण्यवत मनुष्य नपुंसक की, हरिवर्ष मनुष्य नपुंसक की, रभ्यक वर्ष मनुष्य नपुंसक की, देवकुरू मनुष्य नपुंसक की, उत्तर कुरू मनुष्यनपुंसक की और अन्तरदीपज मनुष्य नपुंसक- की कायस्थिति जाननी चाहिये । अर्थात् इन क्षेत्रो के मनुष्य नपुंसको की कायस्थिति जन्म की अपेक्षा लेकर जघन्य से एक अन्तजहण्णेणं अतोमुदुत्त उक्कोसेणं अतोसुहत्त पुहत्त" हे गौतम गन्सनी अपेक्षायी तमानी કાયસ્થિતિને કાળમાન ઓછામાં ઓછા એક અતર્મુહને છે અને ઉત્કૃષ્ટથી આ તમુહૂર્ત પૃથફ-એટલે કે બે અંતર્મુહૂર્તથી લઈને નવ અંતર્મુહૂર્ત સુધીનો છે અહિયાં જઘન્યથી જે કાળમાન કહ્યો છે, તે “એટલા પણ કાળમાં તે બરાબર ઉત્પન્ન થઈ જાય છે.” એ અપેક્ષાથી કહેલ છે. તથા ઉત્કૃષ્ટકાળ જે અંતર્મુહૂર્ત પૃથકત્વરૂપ કહેલ છે, તે આટલાકાળ પછી પાછા से ३५थी ते त्या 4-1 यता नथी. मा पातने सन हेन छ “साहरणं पडुच्च जहण्णेणं. अंतोमुटुत्त उक्कोसेणं देसूणा पुचकोडी" स २४नी अपेक्षाथी तेसोनी यस्थिति જઘન્યથી એક અતર્મને છે કેમ કે–તે પછી તેનું મરણુવિગેરે થઈ જાય છે. અને ઉત્કૃષ્ટ थी शनिमेट ४४४ मेछ। पूटिनु छ ‘एवं सम्वेसिं जाव अतर द्वीवगाण" सामान्य અકર્મ ભૂમિના મનુષ્ય નપુસકેની જેવી કાયસ્થિતિ છે, એ જ પ્રમાણેના બધાની જ એટલે કેહેમવત ક્ષેત્રના મનુષ્ય નપુંસકની, રમ્યક વર્ષ ક્ષેત્રના મનુષ્ય નપુંસોની, દેવકુરૂક્ષેત્રના મનુષ્ય નપુરની ઉત્તરકુરૂના મનુષ્ય નપુસકેની અને અતરદ્વીપના મનુષ્ય નપુસકેની કાયસ્થિતિ