Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 602
________________ ५८० जीवाभिगमसूत्रे देवकुरुत्तरकुरुगतगर्भजमनुष्याणामन्तरद्वीपजगर्भजमनुष्येभ्यः सख्येयगुणत्वात् तथा गर्भजमनुष्याणा मुच्चाराद्याश्रयणेन संमूछिममनुष्याणामुत्पादात् सख्येयगुणत्वं बोध्यम् स्वस्थाने तु देवकुरुत्तर कुरुवासित्तयानामपि स्वस्थाने परस्परं तुल्यतैवेति ‘एवं णाय पुचविदेह अवर विदेह कम्मभूमिग मणुस्स णपुंसगादोवि तुल्ला संखेज्जगुणा एवं यावत् पूर्वविदेहापरविदेहकर्मभूमिकमनुप्यनपुंसका द्वयेऽपि संख्येयगुणा । यावत्पदेन देवकुरूत्तरकुरूमनुष्यनपुंसकापेक्षया हरिवर्परम्यकवर्षाकर्मभूमिकमनुष्यनपुंसकाः सख्येयगुणाः स्वस्थाने तु हरिवर्परम्यकवपनपुंसका द्वयेऽपि परस्परं तेभ्योऽपि हैमवत हैरण्यवतवर्षाकर्मभूमिकमनुष्याः संख्येयगुणाः स्वस्थाने तु परस्परंद्वयेऽपितुल्या., तेभ्यो भरतैरवतवर्प कर्मभूमिकमनुष्यनपुंकाः सख्येयगुणाः, स्वस्थानेद्वयेऽपि परस्परं तुल्याः तेभ्य लाये हुए होते है किन्तु वहा के जनमे हुए नहीं हो सकते । “देव कुरूत्तर कुरु अकम्मभूमिगादोवि तुल्ला संखेज्ज गुणा" देव कुरु और उत्तर कुरु रूप अकर्मभृमिज मनुष्य नपुंसक अन्तरद्वीपज मनुष्य नपुंसकोकी अपेक्षा सख्यात गुणे अधिक है । क्योंकि अकर्मभूमिगत मनुष्य अन्तर द्वीपजगर्भज मनुष्यो से सख्यात गुणे अधिक है । गर्भज मनुष्यों के उन उच्चार प्रस्रवण आदि मलके सम्बन्ध से वहां समूछित मनुष्यो का उत्पाद होनेसे वे असल्यात गुणे देव कुरु के और उत्तर कुरू के मनुष्य नपुंसक परस्पर आपस में तुल्य है "एवं जाव पुव्व विदेहावर विदेह कम्मभूमिक मणुस्स णपुंसगा दोवि तुल्ला संखेज्ज गुणा" देव कुरु उत्तर कुरु अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की अपेक्षा हरिवर्प और रम्यकवर्ष के मनुष्य नपुसक सख्यात गुणे अधिक हैं पर ये स्वस्थान में समान ही है- इनकी अपेक्षा भी हैमवत क्षेत्र के और हैरण्यवत क्षेत्र के जो मनुष्य नपुंसक है वे सख्यात गुणे अधिक हैं-पर इनमें भी आपसमें तुल्यता है-इनकी अपेक्षा भरत ऐरावत क्षेत्र के मनुष्य नपुंसक सख्येय गुणे अधिक है और परस्पर में तुल्य इनकी अपेक्षा पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह के जो कर्म भूमिक मनुष्य नपुंसक નપુંસકે હોય તે તેઓ કર્મભૂમિમાંથી સંહરણકરીને લાવવામાં આવેલા હોય છે. પરંતુ ત્યાંના समेत 3ाता नथी "देवकुरूत्तरकुरुथकम्मभूमिगा दोवि तुल्ला संखेज्जगुणा" हे १३ અને ઉત્તર કુરૂ રૂપ અકર્મભૂમિના મનુષ્ય નપુ સકે અંતરદ્વીપના મનુષ્ય નપુંસકે કરતા અંખ્યાતગણું વધારે હોય છે કેમકે અકર્મ ભૂમિમાં રહેલા મનુષ્ય અંતરદ્વીપના ગર્ભજ મનુષ્ય કરતાં સંખ્યાત ગણા વધારે હોય છે. ગર્ભજ મનુષ્યના ઉચ્ચાર, પ્રસ્ત્રવણ વિગેરે મલના સંબધથી ત્યા સંમૂર્ણિમ મનુષ્યને ઉત્પાદ થવાથી તેઓ અસંખ્યાત ગણા છે દેવ७३ भने उत्त२४३न। मनुष्य नस।। ५२२५२मा समान छ ‘एवं जाव पुन्वविदेहावर विदेह कम्मभूमणुस्सण णपुंसगा दोवि तुल्ला संखेज्जगुणा" वि३ उत्त२४३ २४ भूमिना मनुष्य નપુંસકે કરતા હરિવર્ષ રમ્યક વર્ષના મનુષ્ય નપુંસકે સંખ્યાત ગણા વધારે હોય છે પરંતુ તેઓ સંસ્થાનમાં સરખા જ હોય છે. તેના કરતાં પણ હેમવત ક્ષેત્રના અને હૈરયવત ક્ષેત્રના

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