Book Title: Jivajivabhigamsutra Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 603
________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र०२ नपुंसकस्वरूपनिरूपणम् ५८१ तेभ्यः पूर्वविदेहापर विदेह कर्मभूमिक मनुष्यनपुंसकाः सख्येयगुणाः स्वस्थाने तु दयेऽपि परस्परं तुल्यता एवेति चतुर्थ मल्पबहुत्वमिति ॥ ___ सम्प्रति-पञ्चमं नारकतिर्यड्मनुष्यविषयमल्पबहुत्वमाह --'एएसिणं' इत्यादि 'एएसि णं भंते' एतेषां खलु भदन्त ! 'णेरइयणपुंसगाणं नैरयिकनपुंसकानाम् 'रयणप्पभा पुढवीणेरइ यणपुंसगाणं' रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकनपुंसकानाम् । 'जाव अहे सत्तम पुढविनेरइयणपुंसगाणं' यावदधःसप्तमपृथिवी नैरयिकनपुंसकानाम् ‘तिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं' तिर्यग्योनिकनपुंसका नाम् ‘एगिदियतिरिक्ख जोणियाणं' एकेन्द्रियतिर्यग्योनिकनपुंसकानाम् ‘पुढवीकाइयएगि दियतिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' पृथिवीकायिकैकेन्द्रिय तिर्यगयोनिकनपुसकानाम् ‘जाव वणस्स इक्काइयएगिदिय तिरिक्खजोणियणपुंसगाणं' यावद्वनस्पतिकायिकैकेन्द्रियतिर्यग्योकनपुंसकाहै वे संख्यात गुणें अधिक है. परन्तु स्वस्थान में ये दोनो तुल्य है. इस प्रकार से यह मनुष्य नपुंसक विषयका चतुर्थ अल्प बहुत्व है। ____ अब नारक और तिर्यञ्च और मनुष्यो के सम्बन्ध को लेकर पांचवा अल्पवहुत्व प्रदर्शित करते है-"एएसिणं भंते! णेरइयणपुंसगाणं" इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा हैहे भदन्त ! इन नैरयिक नपुंसको के-"श्यणप्पभाणेरइयणपुंसगाणं” रत्न प्रभानैरयिक नपुंसको के “जाव अहे सत्तम पुढविनेरइयणपुंसगाणं" रत्न प्रभा यावत् अधः सप्तम पृथिवी के नैरयिक नपुंसकों के "तिरिक्ख जोणियणपुंसगाणं" तियग्योनिक नपुंसको के "पुढवीकाइयएगिदियतिरिक्खजोणियाणं" पृथिवीकायिक एकेन्द्रियर्तियग्योनिक नपुंसको के "जाव ववस्सइयएगिदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगाण” यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियतिर्यग्योनिक नपुंसको के-यावत् पदसे अप्कायिक एकेन्द्रिय तियग्योनिक नपुंसकों के तेजस्कायिक एकेन्द्रिय જે મનુષ્ય નપુંસક છે તેઓ સંખ્યાત ગણું વધારે છે. પરંતુ તેમાં પણ પરસ્પરમાં સમાન પણું છે તેના કરતાં ભરત અરવક્ષેત્રના મનુષ્ય નપુંસક સંખ્યાત ગણા વધારે છે. અને પરસ્પરતુલ્ય છે તેના કરતાં પૂર્વ વિદેહ અને પશ્ચિમ વિદેહના જે કર્મભૂમિના મનુષ્ય નપુંસક છે. તેઓ સંખ્યાત ગણા વધારે છે પરંતુ સ્વાસ્થાનમાં આ બેઉ સરખા છે. આ પ્રમાણે આ મનુષ્ય નપુંસક સંબંધમાં ચોથુ અલપ બહુ પડ્યું છે. હવે નારક, તિર્યંચ અને મનુષ્યોનો સંબંધ લઈને પાંચમાં અલ્પ બહપણાનું કથન કરે छे “एएसिण भंते ! णेरइय णपुंसगाणं" म। सूत्रथी गौतमस्वामी प्रभुन गे पूछे छे है सपन मा नैरयि नसलीमा “रयणप्पभा रइयणपुंसगाणं" रत्नप्रभा पृथ्वीना नै२. य: नसीमा "जाव अहेसत्तमपुढवि नेरइय णपुंसगाण' यावत् अधः सभी पृथ्वीना २य नसभा "पुढवीकाइय एगिदियतिरिक्ख जोणियाणं" पृथ्वीय मे द्रिय पातिय ज्यान नपुंसीमा "जाव वणस्सइकाइय एगिदियतिरिक्खजोणिय णपुंसगाणं"

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