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प्रमेयधोतिका टीका प्रति
देवस्वरूपनिरूपणम् ३३७ विधाः प्रज्ञप्ता, ते भवनवासित आरभ्य वैमानिकपर्यन्ता देवाः समासतः-संक्षेपेण द्विविधाः-द्वि प्रकारकाः प्रज्ञप्ताः- कथिताः द्वैविध्यं दर्शयति- 'तं जहा' इत्यादि, 'तंजहा' तद्यथा-'पज्जत्ता य अपज्जत्ता य' पर्याप्ताश्च अपर्याप्ताश्चेति । देवानामपर्याप्तत्वमुत्पत्तिकाले एव ज्ञातव्यं न तु अपर्याप्तिनामकर्मोदयात् , तदुक्तम्
'नारयदेवातिरिय मणुयगम्भजा जे असंखेज्जवासाउ । एए उ अपज्जत्ता, उववाए चेव बोद्धव्या' ॥१॥ इति, नारका देवा स्तिर्यड्मनुजा गर्भजा ये असख्येयवर्षायुष्काः ।
एते त्वपर्याप्ता उपपाते एव बोद्धव्याः, इतिच्छाया ॥
सम्प्रति- तेषां देवानां शरीरादिद्वाराणि निरूपयितुं प्रथमं शरीरद्वारमाह-'तओ सरीरा' ___ इत्यादि, .'तो सरीरा' त्रीणि शरीराणि तेषां भवनवासिप्रमृतिवैमानिकान्तदेवानां त्रीणि पति आदिके भेद से चार प्रकार के देवों का प्रज्ञापनोक्त वर्णन समझ लेना चाहिये कहां तक ! इसके लिये सूत्रकार कहते हैं-"जाव" इत्यादि, "जाव" यावत् यहां तक अर्थात् चार प्रकार के देवो के वर्णन पर्यन्त कहना चाहिये । अब सूत्रकार इन देवों के भेद के विषय में कहते हैं-"ते समासो दविहा पन्नत्ता" भवनवासी आदि देव जो संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं-"तं जहा" वे इस प्रकार से हैं-"पज्जत्ता य अपज्जत्ता य" पर्याप्त और अपर्याप्त देवों में अपर्याप्तता उत्पत्तिकाल में ही जाननी चाहिये किन्तु अपर्याप्तिनामकर्म के उदय से नहीं जैसे कहा है-"नारयदेवातिरिय" इत्यादि ।
नारक, देव, तिर्यश्च, मनुष्य गर्भज और असख्यात वर्ष की आयुवाले अकर्मभूमिके मनुष्य ये सब उपपात काल में ही अपर्याप्त जानना चाहिये ॥१॥
अब सूत्रकार इन देवों के शरीरादि द्वारों का वर्णन करते हैं-इन देवों के "तओ
યન્ત-જયન્ત અપરાજીત અને સર્વાથ સિદ્ધના ભેદથી પાંચ પ્રકારના હોય છે. ૪ આ રીતે ભવનપતિ વિગેરેના ભેદથી ચાર પ્રકારના દેવેનું વર્ણન પ્રજ્ઞાપના સૂત્રમાં કહ્યા પ્રમાણેનું सभ स ते ४थन यां सुधीन अहए। ४२ ते भाटे सूत्रा२ छे है-"जाव" या "जाव" यावत मा ४थन सुधी मात या२ प्रा२ना हवाना वन पर्यन्त समल.
वे सूत्रा२ मा वाना होना सधमा छ -'ते समासओ दुविहा पण्णत्ता" सनपति मा सपथी में प्रा२ना ४ा छ "तं जहा" ते २मा प्रमाणे छे.-"पज्जता य अपज्जत्ता य" पर्यात भने सपर्यात हेवामा पर्याप्त पात्पत्ति समन्यु परतु अपर्याप्त नामभन। यथी नथी म ४युछे -"नारयदेवातिरि૪” ઈત્યાદિ નારક, દેવ, તિર્યંચ, મનુષ્ય, ગર્ભજ અને અસ ખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા અકર્મભૂમિના મનુષ્ય આ બધા ઉત્પત્તિ કાળમાં અપર્યાપ્ત સમજવા.
हवे सूत्र२ मा वाना शरी२ (वगेरे द्वारानुन ४२ छ.--मा हेवाने "तमो