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जोयाभिगमसूत्र पडुच्च' जन्म प्रतीत्य-अकर्मभूमिजन्माश्रयणेन 'जहन्नेणं देसूर्ण पलिओवमं' जघन्यतो देशोनं पल्योपमम्-तच्चाष्टभागादन्यूनमपि देशोनं भवति, ततो विपल्यापनायाह-'पलिओवमस्स असं. खेजड भागऊणगं' पल्योपमस्यासंख्येयभागेनोनम् एतच्च हैमवतरण्यवतक्षेत्रापेक्षया दृष्टव्यम, तत्र जघन्यत. स्थिते रेतावत्प्रमाणायाः संभवात् । 'उक्कोसेणं तिणि पलियोवमाई उत्कर्पत स्त्रीणि पल्योपमानि स्थितिर्भवतीति, एपा त्रिपस्योपमप्रमाणा स्थिति देवकुरूत्तरकुरुक्षेत्रापेक्षया ज्ञातव्येति 'संहरणं पडुच्च' संहरणं प्रतीत्य, सहरणं नाम कर्मभूमिजाया खियोऽकर्मगमिषु नयन तत्प्रतीत्य तदाश्रित्य 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्त' जघ-नोऽन्तर्मुहुनग 'उक्कोसेणे देरणा काल की कही गई है “गोयमा जम्मणं पडुच्च जहन्नेणं देसूणं पलिभोवमं पलियोवमस्स असंखेज्जइभाग ऊणगं उक्कोसेणं तिणि पलिभोवमाइ" हे गौतम ! अकर्म भूमिर्क मनुष्य स्त्रियों की स्थिति जन्म की अपेक्षा लेकर के जघन्य से देश उन कुछ कम 'एक पल्यापम की कही गई है, पल्यापम में दशोनता तो आठवें भाग आदि से न्यून होने पर भी माजाती है परन्तु ऐसा ऊनता यहा विवक्षित नहीं हुई है इसी बात को प्रकट करने के लिये कहते हैं-"पलिओवमस्स असंखज्जहभागऊणगं" वह ऊनता यहां पन्योपम के असख्यातवें भाग रूप समझना चाहिये, यह कथन हैमवत और हेग्ण्यवत क्षेत्र की अपेक्षा से जानना चाहिये । क्योंकि यहां पर इतने ही प्रमाण को जघन्य स्थिति का सभव है। "उक्कोसेणं तिण्णि पलिओचमाइं' तथा अकर्मभूमिक मनुष्य स्त्रियों की स्थिति उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की कहीं गई है । यह स्थिति देवकुरू और उत्तर कुरु क्षेत्र की अपेक्षा से कही गई जाननी चाहिये । “संहरणं पडुच्च" सहरण-कर्मभूमिकी स्त्री को हरकर अकर्म भूमिमें लेजाने की अपेक्षा अकर्म भूमिक मनुष्य स्त्रियोंकी भवस्थिति "जहन्नेण अंतोमुहत्तं" जघन्य "गोयमा ! जम्मणं पडच्च देसूर्ण पलिमोवमं पलिमोवमस्स असखेज्जइभागऊणगं उक्कोसेण तिन्नि पलिओचमाई" ७ गौतम ! म भूभिनन भनुष्य सियोनी स्थिति भनी અપેક્ષાએ જઘન્યથી દેશ ઉન-કઈ ઓછી એક પલ્યોપમની કહેલ છે પાપમમાં દેશોનપણું તે આઠમા ભાગ આદિથી ન્યૂન થાય ત્યારે પણ આવી જાય છે. પરંતુ એવું ન્યૂન પણું मडिया विवक्षित थयो नया. मे पात २ प्रगट ४२वा भाटे ४ छ -"पलिमो. घमस्स असंखेजइभागऊणग" त न्यून पा महिया पक्ष्या ५मना मन्यात भा भागરૂપ સમજવું. આ કથન હેકવતા અને હરણ્યવત ક્ષેત્રની અપેક્ષાથી સમજવું. કેમકે–અહિયાં मेटसा प्रमाणुनी धन्य स्थिति स ल छे. “उक्कोसेणं तितन्नि पलिओवमाई, तथा અકર્મ ભૂમિક મનુષ્ય સ્ત્રિની સ્થિતિ ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ પલ્યોપમની કહી છે. આ સ્થિતિ हेवा३ भने उत्त२४३ क्षेत्रनी अपेक्षाथी ४७ ७. म सभा 'संहरणं पहुच्च' स २કર્મભૂમિની સ્ત્રીને હરીને , અકર્મભૂમિમાં લઈ જવાની–અપેક્ષાથી અકર્મભૂમિ જ મનુષ્ય श्रियानी सपस्थिति "जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं" धन्यथी तो मे४ मत इतनी छ, भने