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जीवाभिगम
असंखेज्जा पन्नत्ता' प्रत्येकशरीरिण इमेऽसंख्याताः प्रज्ञप्ताः कथिता इति ।
सम्प्रति गर्भनस्थलचरोरः परिसर्पप्रकरणमुपसे हन्नाह - ' से तं उरपरिसप्पा' ते एते गर्भव्युत्क्रान्तिकोरः परिसर्पा लक्षणभेदाभ्यां निरूपिता इति भावः ॥
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ऊरः परिसर्पान् निरूप्य भूजपरिसर्पान् निरूपयितुं प्रश्नयन्नाह - ' से किं तं इत्यादि, 'से किं तं भूयपरिसप्पा' अथ के ते भुजपरिसर्पाः भुजाभ्यां परिसर्पणशीला ये ते भुजपरि सर्पास्ते कियन्तः : इति प्रश्नः, ऊत्तरयति - संमूर्च्छिमभुज सर्पातिदेशेन - 'भेदो तहेव' इति, भेदस्तथैव यथा संमूर्च्छिमभुजपरिसर्पाणां भेदः कथित स्तैनैव रूपेण गर्भजस्थलचरभुजपरिसर्पाणामपि भेदो ज्ञातव्य इति ॥
सम्प्रति- भुजपरिसर्पाणां शरीरादिद्वाराणि दर्शयति- ' चत्तारि' इत्यादि, तत्र प्रथमतः प्रथमं शरीरद्वारमाह - ' चत्तारि सरीरगा' चत्वारि शरीराणि गर्भजस्थलचरभुज परिसर्पाणां चत्वारि औदारिकवैयितैजस कर्मणशरीराणि भवन्तीति शरीरद्वारम् ॥
इसी प्रकार से चारो गतियों के जीव यहां आ सकते हैं । "परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता" यहाँ प्रत्येक शरीरी असंख्यात कहे गये है । " से तं उरपरिसप्पा" इस प्रकार से यहां तक का यह प्रकरण गर्भन उरः परिसर्पो का निरूपित हुआ है ।
उरः परिसर्पों का निरूपण करके अब सूत्रकार भुजपरिसर्पों की प्ररूपणा करते हैं इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है " से किं तं भुयपरिसप्पा" हे भदन्त । भुजपरिसर्पों का क्या लक्षण है और कितने इनके भेद हैं ? उत्तर में मूत्रकार कहते है - "भेदो तहेव " जिस रूप से संमूर्च्छिम भुजपरिसर्पों का मेद कहा है उसी रूप से गर्भजस्थलचर भुजपरिसर्पों का भी भेद जानलेना चाहिये ।
" चत्तारि सरीरगा" शरीर, वैक्रिय शरीर,
अव भुजपरिसर्पों के शरीरादि द्वारों का निरूपण किया जाता है इन भुजपरिसर्पों के शरीरद्वार में चार शरीर होते कहे गये है- औदारिक "परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता" मा प्रत्ये असंख्यात शरीरवाजा असा छे. "से तं उर परिसप्पा" आ रीते अहिं सुधीनु मा स्थन गर्ल ३२. परिसर्पोंना सधमां उस छे. ઉર.પરિસપેર્રાનુ નિરૂપણુ કરીને હવે સૂત્રકાર ભુ×પસિપેર્રાનુ નિરૂપણ કરે છે.--આ लुम्परिसर्पोंना सण धमां गौतमस्वामी प्रसने पूछे छे -"से किं तं भुयपरिसप्पा" हे ભગવનભુજપરાનું શું લક્ષણ છે ? અને તેના કેટલા ભેદે છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामीने हे "भेदो' तहेव" ने प्रभाये सभूमि लुभ्यरि સર્પના ભેદોનુ કથન કર્યું છે, એજ પ્રમાણે ગજ સ્થલચર ભુજપરિસપેર્યાંનુ કથન પણ સમજી લેવું
हवे लुभ्यरिसना शरीर विगेरे द्वारानु नि३ ४२वामां आवे छे. "बचारि सरीरगा" मा लु परिसपना शरीरद्वारभां तेओने यार शरीरो होय छे. ते या प्रभाषे સમજવા, ઔદારિક શરીર ૧, વૈષ્ક્રિય શરીર ૨, તૈજસ શરી૨ ૩, અને કા`ણુ શરીર ૪,