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जीवाभिगमसूत्रे ‘पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकजीवाः नोसंज्ञिनो भवन्ति संमूर्छिमतया समनस्कत्वाभावात् अपितु
असंजिनी भवन्ति । 'णपुंसगवेया' नपुंसकवेदा हमे भवन्ति, न तु स्त्रीपुरुषवेदा इति ॥ 'पज्जत्तीओ अपज्जत्तीओ य पंच' एतेषां पर्याप्तयोऽपर्याप्तयश्च पञ्च, पञ्च भवन्ति मनःपर्याप्तेरभावात् । 'दो दिद्वीओ' द्वे दृष्टी, सम्यग्दृष्टयोऽपि भवन्ति मिथ्यादृष्टयोऽपि भवन्तीति भावः । 'दो दसणा' द्वे दर्शने एते चक्षुर्दर्शनिनोऽचक्षुर्दर्शनिनश्च भवन्तीति भावः । 'दो नाणा' ट्रे ज्ञाने भवतः मतिज्ञानिनः श्रुतज्ञानिनश्चैते भवन्तीति भावः 'दो अन्नाणा' है अजाने, ते मत्यज्ञानिनः श्रुताज्ञानिनश्च भवन्तीति भावः । 'दुविहे जोगे' द्विविधो योगः वाग्योग काययोगश्चतेषां भवन्तीति भावः । 'दुविहे उपओगे' द्विविध उपयोगः, साकारोपयोगानाकारोपयोगद्यवन्त ऐते भवन्तीति भाव 'आहारो छदिसि' आहारः षड् दिशि अमनी' ये संज्ञी नहीं होते छमजी होते हैं असजी होने के कारण इनका संमूच्छिम होना है। क्योकि संमूर्छिम जंवों के मन नहीं होता है। 'णपुंसगवेया' ये सब नपुंसक वेद वाले ही होते है । स्त्री वेद वाले और पुरुष वेद वाले ये नहीं होते हैं। 'पज्जत्तीओ अपज्जत्तीओ पंच' इन जलचर संमूर्छिम जीवों के पांच पर्याप्तियाँ और पाच अपर्याप्तियां होती हैं । उनके
मन.पर्याप्तिका अभाव रहता है "दो दिट्ठीओ' ये जलचरे संमूच्छिम जीव सम्यग्दृष्टि भी .. होते है और मिध्यादृष्टि भी होते है। "दो दंसणा' इनके चक्षुर्दर्शन और अचक्षुर्दर्शन ये दो दर्शन होते है। "दो नाणा' मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ऐसे दो ज्ञान इनके होते हैं । "दो अनाणा' दो अज्ञान मत्यज्ञान और श्रुनाज्ञान-ऐसे दो अनान इनके होते हैं-"दुविहे जोगे' काय योग और वचन योग ऐसे दो योग इनके होते हैं । “दुविहे उवजोगे' ये साकार उपयोग और अनाकार उपयोग इन-दो उपयोगो वाले होते हैं । "आहारो छदिसिं" इनका माहार छह दिशामों छ 'नो सन्नी असन्नी" तव्यो सनी हाता नथी ५६भसी डाय छे. सससी डावाનાકણે તેઓનું સંમૂર્ણિમ પડ્યું છે કેમકે સંમૂર્ણિમ જીવને મન હોતું નથી જ jana” તેઓ બધા નપુસક વેદવાણાજ હોય છે. તેઓ સ્ત્રીદવાળા અને પુરૂષ देवा ता नथी 'पज्जत्तीभो अपज्जत्तीओ पंच' २ सय२ स भूमि वाने પાથ પર્યાપ્તિ અને પાચ અપપ્તિ હોય છે. તેઓને મન:પર્યાતિને અભાવ હોય से 'दो विडीयो माय२ स भूरिभ व सभ्यष्टि वाणा डाय छे मन भिथ्याहटिवाणा पर दो दसणा' तेमाने यक्षुशन भने सन्याशन से प्रभारी नाशिनी डायछ 'टो णाणा" भतिजान, मने श्रुतज्ञान में प्रभाधेना में ज्ञान तमन हाय छ 'नो अन्नाणा' तेमने भात मशान मन श्रुताज्ञान मे शत मे मज्ञान हाय छ 'दुविहे जोगे' भने पायथे। मने क्यनया में प्रभागना में योगी हाय छे. 'दुविहे उवजोगे' तन्मे। सा२ ७५ये। मने माना।२ ६५ मे प्रभारी ना मे ६५.