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प्रमेयद्योतिका टीका प्रति० १
पञ्चेन्द्रियजीवनिरूपणम् २१५
अथ चतुर्थं सस्थानद्वारमाह - ' तेसि णं' इत्यादि, 'तेसि णं भंते ? जीवाणं सरीरगा किं संठिया पन्नत्ता' तेषा नारकाणां खलु भदन्त जीवानां शरीराणि किं संस्थितानि - कीदृशसंस्थानयुक्तानि प्रज्ञप्तानि इति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहा पन्नत्ता' द्विविधानि शरीराणि प्रज्ञप्तानि 'तं जहा ' तद्यथा - 'भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य' भवधारणीयानि च शरीराणि उत्तर वैकुर्विकाणि च, 'तत्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते हुंडसंठिया' तत्र - तयोर्द्वयोः शरीरयोर्मध्ये खलु यानि तानि शरीराणि भवधारणीयानि तानि हुण्ड संस्थितानि - हुण्डसंस्थानयुक्तानि भवन्ति । तथाहि - भवधारणीयानि तेषां नारकाणां शरीराणि एव निर्मूलविलुप्त पक्षोत्पाटितसकलग्रीवादि रोमपक्षिशरीर कवदतिबीभत्सहुण्ड
भवस्वभावत
संस्थान द्वार कहते है " तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किं संठिया पन्नत्ता हे भदन्त ! इन नारक जीवो के शरीर कैसे संस्थान से युक्त है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं"गोमा ! दुविहा पन्नत्ता, हे गौतम नारक जीवो के शरीर दो प्रकार के कहे है"तं जहा जैसे- 'भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य' एक भवधारणीय शरीर, और दूसरा उत्तर वैक्रियिक शरीर, इन में "जे ते भवधारणिज्जा" जो भवधारणीय शरीर है "ते हुंड संठिया" वे सब हुण्डक संस्थान वाले होते है । क्योकि उन नारकों के ये भवधारणीय शरीर स्वभाव से ही उस पक्षी के शरीर की तरह होते है कि जिनकी दोनों पंख बिलकुल मूल से उखाड़ लिये गये हो और ग्रीवा रोम आदि जिसके शरीर से निकाल दिये गये हों ऐसा पक्षी जैसे देखने में अति वीभत्स लगता है इसी प्रकार से ये नारकी भी शरीर में ऐसे ही बीभत्स प्रतीत होते हैं । इनके शरीर की रचना इस संस्थान में बिलकुल बेडोल होती है ।
હવે સસ્થાનદ્વારનું કથન કરવામાં આવે છે—તેમા ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને પૂછે છે - "तेसि ण भंते ! जीवाणं सरीरगा किं संठिया पन्नत्ता" हे भगवन् मा नारशुकवाना शरीर ठेवा संस्थान वाजा होय छे ? या प्रश्नमा उत्तरमा अलु उडे छे - "गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता" हे गौतम ! नारवाना शरीर मे अारना उडेवामां आवेला छे "तं जहा" ते भा प्रभाये छे. " भवधारणिज्जा य उत्तरवेउब्विया य" मे अवधारणीय शरीर मी उत्तर वैडिय शरीर तेभा ? " जे ते भवधारणिज्जा" ने लवधारणीय शरीर छे, 'ते हुंडसंठिया" ते मधा हुॐ संस्थान वाणा होय छे उभडे-ते नारअनु मालव ધારણીય શરીર સ્વભાવથી જ તે પક્ષીના શરીર જેવુ... હાય છે, કે જેની ખન્ને પાંખા બિલ્કુલ મૂળમાંથી ઉખાડીલેવામા આવી હાય તેમજ ગ્રીવા રેમ વિગેરે જેના શરીરમાંથી કહાડીનાખવામાં આવેલા હાય એવા પક્ષિ જોવામાં જેમ અત્યન્ત બિભત્સ-ખરામ બિહામણા લાગે છે, તેજ પ્રમાણે આ નારકીચે પણ શરીરથી એવા જ ખીહામણા દેખાય છે. तेमोना शरीरनी रथना या संस्थानभां मिल मेराज होय छे. तथा ने "उत्तरवेउनिया ते